Book Title: Ekarthak kosha
Author(s): Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 418
________________ परिशिष्ट २ : ३७१ व्यक्ति के अर्थ को व्यक्त करते हैं। संत (सत्) सत्, तत्व, तथ्य, अवितथ और सद्भूत ये सारे शब्द सत्य-यथार्थ के द्योतक हैं । जो तथ्य होता है वह यथार्थ ही होता है।' संत (शान्त) 'संत' आदि शब्द शान्त के अर्थ में प्रयुक्त एकार्थक हैं। इनका अर्थभेद इस प्रकार हैशान्त-कषायमंदता। प्रशान्त-कषाय के उदय को विफल करने वाला। उपशान्त-कषायों को उदय में भी नहीं लाने वाला। परिनिर्वत-कषाय के पूर्ण नष्ट हो जाने पर चैतसिक स्वास्थ्य का धनी। अनाश्रव-प्राणातिपात आदि आस्रव से रहित । अमम--ममकार रहित । अकिंचन--अपरिग्रही । छिन्नस्रोत–संसार प्रवाह के उद्गम मिथ्यात्व आदि स्रोतों से रहित । निरुपलेप-कम लेप से रहित । ___ इस प्रकार ये सभी शब्द निर्मलता की उत्तरोत्तर अवस्था के वाचक हैं। संत (श्रान्त) ___ 'संत' आदि तीनों शब्द थकान के अर्थ में प्रयुक्त हैं।' श्रान्त---शारीरिक थकान । तान्त-मानसिक थकान । परितान्त-शारीरिक और मानसिक थकान । १. ज्ञाटी प १८४ : एकार्था वैते शब्दाः । २. औपटी पृ ६६ : प्रशमप्रकर्षाभिधानायैकार्थम् । ३. उपाटी पृ १११ : एते समानार्थाः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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