Book Title: Ekarthak kosha
Author(s): Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 420
________________ २. देवेन्द्र -- देवों का इन्द्र | ३. देवराज — देवों के मध्य सुशोभित होने वाला । ४. मघवा — मच मेथ को वश में रखने वाला । परिशिष्ट २ ५. पाकशासन -- पाक नामक शत्र पर शासन करने वाला । ६. शतक्रतु - सौ यज्ञ सम्पन्न करने वाला । जैन परम्परा के अनुसार कार्तिक सेठ के भव में सौ उपासक प्रतिमाओं का पालन करने से शतक्रतु । ७. सहस्राक्ष- इन्द्र के ५०० मंत्री होते हैं । वह उनकी हजार आंखों से देखता है । अथवा हजार आंखों से जितना देखा जाता है वह अपनी दो आंखों से देख लेता है, अतः सहस्राक्ष । ८. वज्रपाणि - हाथ में वज्र रखने वाला । 8. पुरंदर - पुर नामक राक्षस का दारण करने वाला । १०. दक्षिणार्धलोकाधिपति । ११. एरावणवाहन - एरावण नामक हाथी के वाहन वाला । १२. सुरेन्द्र - सुर / देवों का इन्द्र । सक्कार ( सत्कार ) 'सक्कार' शब्द के पर्याय में सात शब्दों का उल्लेख है । ये सभी शब्द सम्मान अभिव्यक्त करने की भिन्न- २ रीतियों के द्योतक हैं, जैसे— २. सम्मान- -स्तुतिवचन, चरणस्पर्श आदि । ३. कृतिकर्म – वन्दन करना । - : ३७३ १. सत्कार—'सक्कारा पवरवत्थमाईहिं' - किसी को आदरपूर्वक भोजन, वस्त्र आदि देना । ४. अभ्युत्थान- सामने जाना अथवा आदरणीय व्यक्ति के सम्मान में खड़े होना । ५. अंजलि प्रग्रह - हाथ जोड़ना । ६. आसनाभिग्रह - आसन पर बैठने का आग्रह करना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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