Book Title: Ekarthak kosha
Author(s): Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 424
________________ परिशिष्ट २ ३७७ किटिकटिकाभूत-मांस क्षय से उठने-बैठने में हड्डियों का चरमराना । अस्थिचर्मावनद्ध ---- केवल हड्डियों का ढांचा वाला । धम निसंतत - शरीर में केवल नाड़ियों का जाल मात्र दिखाई देना । यह शब्द तपस्वी के विशेषण के रूप में बहुलता से प्रयुक्त होता है । सुत ( सूत्र ) सुत्त शब्द के दो अर्थ हैं - ज्ञान, आगम । यह समवेत रूप में शास्त्र या आगम का वाचक है । इन शब्दों की अर्थ- परम्परा इस प्रकार है— १. श्रुत --- गुरु से सुना हुआ ज्ञान । २. सूत्र - मूल आगम वाक्य | ३. ग्रन्थ - ग्रंथ रूप में ग्रथित । ४. सिद्धान्त - तथ्य का अन्त तक निर्वाह करने वाला । ५. शासन - धर्म की अनुशासना देने वाला । ६. आज्ञावचन - तीर्थंकर या केवली द्वारा प्रतिपादित वाक्य | ७. उपदेश -- हित अहित का विवेक देने वाला । ८. प्रज्ञापन — तत्त्व का यथार्थ बोध देने वाला | ६. आगम - आचार्य - परम्परा से प्राप्त । सुद्ध (शुद्ध) 'सुद्ध' आदि सभी शब्द शुभ्रता / निर्मलता के द्योतक हैं। दिवस प्रकाश की दृष्टि से शुभ्र होता है और आकाश नीरज होने से प्रसन्न - शुभ होता है । इस प्रकार 'अतिविशुद्ध' वितिमिर, शुचिम आदि सभी शब्द शुभ्रता व निर्मलता की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं के द्योतक हैं । देखें --- 'सेत' | सुरा (सुरा) सुरा, मेरक आदि मादक रस मदिरा के ही विभिन्न प्रकार हैं । १. अनुद्वामटी प ३४-३५ एकाथिकानि तत्वतः एकार्थविषयाणि नानाघोषाणि पृथग्भिन्नोदात्तादि स्वराणि नानाव्यञ्जनानि पृथग्भिन्नाक्षराणि नामधे - यानि पर्यायध्वनिरूपाणि भवन्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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