Book Title: Ekarthak kosha
Author(s): Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 423
________________ ३७६ । परिशिष्ट २ २. परंपरगत–जो उत्कृष्ट-उत्कृष्ट स्थिति को प्राप्त हो गये हैं। ३. असंग-सभी बन्धनों से मुक्त । ४. अशरीरकृत-अशरीरी। ५. निष्प्रयोग-प्रवृत्ति रहित । ६. बुद्ध-केवल ज्ञान सम्पन्न । ७. मुक्त-कर्मबन्धन से मुक्त । ८. परिनिर्वृत-कर्मकृत विकारों से वियुक्त होने से शान्त । सीईभूय (शीतीभूत) कषायों के उपशमन के अर्थ में सभी शब्द एकार्थक हैं।' शीतीभूत-कषायाग्नि का उपशमन । परिनित-कषाय की ज्वाला को शांत करना। उपशांत-राग-द्वेष की अग्नि का उपशमन । - प्रल्हादित-कषाय के परिताप का उपशमन कर शांत रहना। सीलमंत (शीलमद्) व्रती व्यक्ति के अर्थ में इन तीनों शब्दों का उल्लेख है। लेकिन इनका अर्थभेद इस प्रकार है१. शील-चारित्र । २. गुण-ज्ञान। .. ३. व्रत-महाव्रत, गुणवत आदि ।' सुक्क (शुष्क) 'सुक्क' पद के पर्याय में ६ शब्दों का उल्लेख है । ये सभी शब्द कृश व्यक्ति की विभिन्न पर्यायों के द्योतक होने पर भी समवेत रूप से समान अर्थको व्यक्त करते हैं। कुछ शब्दों की अर्थ-परम्परा इस प्रकार है। शुष्क-खून की कमी से शुष्क आभा वाला । भुक्ख-भोजन की कमी से दुर्बल । यह देशी शब्द है । निर्मास-मांस की कमी से कमजोर । १. सूटी प १५० : एकाथिकानि वैतानीति । २. उशाटी प३८५। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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