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परिशिष्ट २ : ३८१
हित-अपाय रहित । शुभ-पुण्यकर। क्षम-औचित्यकर। निःश्रेयस–निश्चित कल्याणकर ।
आनुगमिक-भविष्य में निरन्तर कल्याणकारी। होलणा (हीलना)
'हीलणा' आदि शब्द तिरस्कार करने के अर्थ में प्रयुक्त हैं । अभिव्यञ्जना में अर्थभेद होते हुए भी ये समान अर्थ में प्रयुक्त हैं। हीलना-जाति आदि से अवहेलना करना । अथवा जाति से बहिष्कृत
करना। तर्जना-तर्जनी अंगुली दिखाते हुए डांटना। ताडना-थप्पड़ मारना।
गर्हणा-गर्हणीय लोगों के सामने निंदा करना।' होलिज्जमाणी
देखें-'हीलणा'। हेरगोवएस (हेतुकोपदेश)
जो अवबोध हेतु/कारण से होता है वह हेतुकोपदेश संज्ञा कहलाती हैं। विकलेन्द्रिय और असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीव हित की प्रवृत्ति और अहित की निवृत्ति इसी संज्ञा से करते हैं। जैसे चींटी गंध के आधार पर वस्तु का ज्ञान कर लेती है । यह प्रायः वार्तमानिकी संज्ञा है।
१. मोपटी पृ १९५॥
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