Book Title: Ekarthak kosha
Author(s): Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 427
________________ ३८० : परिशिष्ट २ हत्यिक ( हास्तिक) अंगविज्जा में 'हत्यिक' शब्द के पर्याय में ५ शब्दों का उल्लेख है । ये पांचों शब्द कटक- -कङ्गन के बोधक हैं । कुछ शब्दों का अर्थबोध इस प्रकार है } हास्तिक हत्यिक चक्रक मिथुनक -- गोलाकार जोड़ा । कंगण - हाथ को सुशोभित करने वाला आभूषण । हय ( हत ) ये सभी शब्द प्रहार करने के अर्थ में एकार्थक हैं लेकिन इनका अवस्थाकृत भेद इस प्रकार है हत - शस्त्र आदि से घात करना । मथित -- भूमि पर पछाड़ना । घात - - मर्मस्थानों पर प्रहार करना । विपतित-भूमि पर डालकर घसीटना । - हाथ में पहना जाने वाला | हयतेय ( हततेज) 'हयतेय' आदि पांचों शब्द विनष्ट तेज वाले व्यक्ति के विशेषण के रूप में एकार्थक हैं । इनकी अर्थ - परम्परा इस प्रकार है हत तेज - आवरण आदि के कारण तेज रहित होना । नष्टतेज — स्वतः ही तेज का नष्ट होना । -अव्यक्त तेज, जलने आदि से तेज समाप्त होना । भ्रष्टतेजलुप्ततेज-तेज का लुप्त हो जाना । विनष्टतेज-तेज का सर्वथा विनाश । -- हिय ( हित ) हित आदि शब्द प्रतिपाद्य विषय पर बल देने वाले हैं । साधारण-तथा इन शब्दों में हितकारी अर्थ ही ध्वनित होता है लेकिन प्रत्येक शब्द की अर्थभिन्नता इस प्रकार है १. भटी पृ १२५७ : एकार्था वैते शब्दाः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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