Book Title: Ekarthak kosha
Author(s): Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 425
________________ ३७८ परिशिष्ट २ जैसे -- सुरा - पिष्ट आदि द्रव्य से निष्पन्न मदिरा । मेरक-सुरा को पुनः सन्धान करके जो सुरा तैयार की जाती है । मादक रस- - इसके अन्तर्गत सभी मादक रस जाते हैं ।' सुसील (सुशील) देखें- 'सीलमंत' 'निस्सील' | सेज्जा ( शय्या) सेज्जा शब्द के पर्याय में नौ शब्दों का उल्लेख है । ये सभी शब्द बैठने अथवा सोने के भिन्न भिन्न आकार के आसनों के द्योतक हैं । लेकिन जातिगत समानता से इन्हें पर्यायवाची मान लिया है । इनमें कुछ.. शब्द विशिष्ट अर्थवत्ता के संवाहक हैं । जैसे- १. शय्या - शरीर प्रमाण बिछोना । २. खट्वा - नीवार आदि से निर्मित पलंग । ३. वृषी-तापसों का कुश आदि से बना आसन । ४. आसंदी - कुर्सी । ५. पेढिका काष्ठ निर्मित बैठने का बाजोट । ६. महिशाखा - भूमी का वह साफ-सुथरा भाग जो बैठने के काम आता है । ७. सिला - शिला / पत्थर से निर्मित आसन । ८. फलक — लेटने का पट्ट अथवा पीढा । - ६. इट्टका - ईंट से निर्मित आसन । सेत (श्वेत) देखें— 'सुद्ध' । स्वर् (स्वर्) स्वर्ग के बोधक यहां छह शब्दों का उल्लेख है । इनमें कुछ शब्दों का आशय इस प्रकार है जिसके सुखों का वर्णन किया जाता है वह स्वर्ग है । वह देवताओं का निवासस्थान होने से सुरसद्म तथा त्रिदशावास कहलाता हैं । १. दशहाटी प १८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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