Book Title: Ekarthak kosha
Author(s): Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 421
________________ ३७४ परिशिष्ट २ ७. आसनानुप्रदान — आदरणीय व्यक्ति का आसन एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना । सणिहि (सन्निधि) सन्निधि आदि शब्द संग्रह के द्योतक हैं । लेकिन इन शब्दों में पदार्थ कृत भेद द्रष्टव्य है । जैसे— सन्निधि - दूध, दही आदि विनाशी द्रव्यों का संग्रह | सन्निचय - अविनाशी द्रव्यों का संग्रह । निधि - सुरक्षित पूंजी । निधान - भूमिगत खजाना । सट्टूल ( शार्दूल ) शार्दूल, सिंह और चिल्लल— ये तीनों शब्द सिंह की भिन्न -२ जातियों के द्योतक हैं । 'चिल्लल' शब्द चीते के अर्थ में देशी पद है । समण ( श्रमण ) देखें—'भिक्खु' । समर (समर) इसमें संगृहीत पांचों शब्द कलह, युद्ध के द्योतक हैं १. समर - घनघोर युद्ध । २. संग्राम - रण । ३. डमर - राजकुमार आदि के द्वारा उत्पन्न उपद्रव । ४. कलि – सामान्य लड़ाई, मानसिक क्षोभ । ५ कलह - वाचिक लड़ाई । सागाfरय (सागारिक) सागारिक का अर्थ है - गृहस्थ । वह साधुओं को शय्या / वसति का दान करता है अतः वह शय्यातर है । ये सारे शब्द मुनि को वसति का दान करने के कारण शय्यातर के वाचक हैं । सामायिक ( सामायिक ) सामायिक का अर्थ है - वह प्रवृत्ति जिसमें समता का लाभ होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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