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पाह
३७२ : परिशिष्ट २ संदाण (सन्दान)
किसी तपस्या या साधना के प्रतिफल में भौतिक ऋद्धि सिद्धि की आकांक्षा करना संदान/बंधन है । निदान, पर्व आदि इसी के पर्याय है। संबुद्ध (संबुद्ध)
___ संबुद्ध, पंडित व प्रविचक्षण ये तीनों शब्द ज्ञानी व्यक्ति के लिए प्रयुक्त हैं । चूर्णिकार ने एकार्थक मानते हुए भी इनका सूक्ष्म अर्थभेद किया हैसंबुद्ध-बुद्धि-सम्पन्न, सम्यग् दर्शन युक्त । पंडित-परित्यक्त भोगों के प्रत्याचरण में दोषों को जानने वाला,
सम्यग् ज्ञान से युक्त । प्रविचक्षण-पाप से विरत, सम्यक् चारित्र से युक्त ।' संयत (संयत)
जो सतरह प्रकार के संयम से संवृत है वह संयत, जो साधनाशील है वह साधु तथा जिसके सभी द्वन्द्व समाहित हो चुके हैं वह सुसमाहित
है। इस प्रकार ये तीनों शब्द मुनि के पर्याय हैं। संरंभ (संरम्भ)
संरभ आदि तीनों शब्द हिंसा की क्रमिक अवस्थाओं के द्योतक हैं। इनका आशय इस प्रकार हैसंरंभ-वध का संकल्प करना । समारंभ-परितापित करना।
आरंभ-वध करना। सक्क (शक)
'सक्क' शब्द के पर्याय में बारह शब्दों का उल्लेख है जो अर्थभेद रखते हुए भी भिन्न-भिन्न प्रवृत्ति के निमित्त से इन्द्र के अर्थ में रूढ हैं
१. शक्र—-शक्ति सम्पन्नता का द्योतक । १. दशजिचू पृ. ६२ तथा दशहाटी प ६६ । २. स्थाटी प ३८४ ।। ३. अनुद्वामटी प २४६ : प्रत्येकं भिन्नाभिधेयान् प्रतिपद्यते, भिन्नप्रवृत्ति...
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