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संख (शंख)
शंख सफेद होता है । इसके पर्यायवाची ८ शब्द हैं । ये सभी शब्द श्वेतवर्ण के द्योतक हैं, अतः वर्णसाम्य के कारण ये एकार्थक हैं ।
संघ (संच)
: परिशिष्ट २
संघ आदि चारों शब्द श्रमणसमुदाय को व्यक्त करने वाले हैं । लेकिन इनमें संख्याकृत भेद है
संघ - गण समुदाय ।
गण - कुल समुदाय ।
कुल- गच्छ समुदाय ।
गच्छ--- एक आचार्य का परिवार ।
-संजत ( संयत )
इसके अन्तर्गत गृहीत संयत, विमुक्त आदि छहों शब्द संयमी व्यक्ति की भावधारा के द्योतक हैं। जो व्यक्ति संयमी होता है वह बाह्य आकर्षणों से विमुक्त होता है, अनासक्त होता है । पदार्थ के प्रति तथा शरीर के प्रति उसकी मूर्च्छा नहीं होती । वह ममकार तथा स्नेहबंधन से मुक्त होता है ।
-संजय (संयत )
अनगार या साधु के विशेषण के रूप में आगमों में अनेक स्थलों पर 'संजय' आदि शब्दों का उल्लेख हुआ है
संयत — सतरह प्रकार के संयम में अवस्थित |
विरत - पापों से निवृत्त भिक्षु, अथवा बारह प्रकार के तप में अनेक प्रकार से रत ।
प्रतिहतपापकर्मा - ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों को हत करने वाला । प्रत्याख्यातपापकर्मा- - आस्रव द्वारों को निरुद्ध करने वाला ।
अर्थभेद करते हुए भी चूर्णिकार जिनदास ने इनको एकार्थक माना
है
इसके अतिरिक्त अक्रिय, संवृत तथा एकान्तपंडित भी संयमी १ दश जिचू पृ १५४ : अहवा सव्वाणि एताणि एगट्ठियाणि ।
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