Book Title: Ekarthak kosha
Author(s): Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 415
________________ ३६८ : परिशिष्ट २ २. रोपण-अंकुर आदि को पुनः रोपना । जैसे शालि धान्य भादि । ३. प्रकिरण-बीजों को इधर उधर बिखेरना। ४. परिशाटन-कलमें लगाना । यहां वपन शब्द का अर्थ है-कुछ लाभ देने वाला। ये चारों शब्द एकार्थक हैं।' यवहार (व्यवहार) संघ व्यवस्था की दृष्टि से निर्मित आचार संहिता जिसमें कर्तव्य और अकर्तव्य तथा प्रवृत्ति-निवृत्ति का निर्देश हो, वह व्यवहार कहलाती है। व्यवहार के ५ भेद हैं—आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीत । भाव व्यवहार के ये पर्याय नाम हैं१. सूत्र-अर्थ की सूचना देने वाले पूर्व अथवा छेदसूत्र । २. अर्थ-सूत्र का अभिधेय स्पष्ट करने वाला। ३. जीत-अनेक गीतार्थ मुनियों द्वारा आचीर्ण । ४. कल्प-संथम पालन करने में शक्ति प्रदाता । ५. मार्ग-शुद्धि का साधन । ६. न्याय-मोक्ष का साधन । ७. इप्सितव्य-मुमुक्षुओं द्वारा वांछित । ८. आचरित-महान व्यक्तियों द्वारा आचरित । ये आठों पर्याय 'व्यवहार' के विषय-वस्तु तथा प्रतिपाद्य के वाचक हैं। बाम (वाम) वाम का अर्थ है-प्रतिकूल । वामावृत्त, वामायार, वामशील आदि शब्द प्रतिकूल शील व आचार के अर्थ में प्रयुक्त हैं। इनमें वामपक्ष, वामदेश, वामभाग आदि शब्द दाहिने भाग के वाचक हैं। तथा अपसव्य आदि शब्द संस्कृत कोशों में भी वाम के अर्थ में प्रयुक्त हैं । अप्पग्ध शब्द १. व्यभा १ टी प ५ : वपनशब्दस्य प्रदानलक्षणोऽर्थः सथितः ।...... शब्दचतुष्टयमेकार्थ, एकार्थप्रवृत्ताः परस्परमेते पर्यायाः । २ व्यभा १ टी प६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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