Book Title: Ekarthak kosha
Author(s): Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 422
________________ परिशिष्ट २ । ३७५ है । समता, प्रशस्तता, शांति, सुख, अनवद्यता और पवित्रता-ये सारे शब्द सामायिक की निष्पत्तियां हैं, अतः कारण में कार्य का उपचार कर इनको भी सामायिक का पर्याय मान लिया गया है। यद्यपि ये शब्द पुनरुक्त जैसे लगते हैं किन्तु यहां पुनरुक्ति दोष नहीं है। ___ आवश्यक नियुक्ति में चार प्रकार की सामायिकों के पर्याय दिये गये हैं। इसके साथ साम, सम और सम्म आदि शब्दों को सामायिक का एकार्थक माना है। सिक्खिय (शिक्षित) ___सिक्खिय' आदि शब्द ज्ञानप्राप्ति की क्रमिक भूमिकामों के द्योतक हैं। इनकी अर्थ-परम्परा इस प्रकार है१. शिक्षित-शिक्षा प्राप्ति की मान्य अवस्था में आदि से अन्त तक पढ़ना। २. स्थित-पढे हुए ज्ञान का अविस्मरण, सतत स्मृति और माचरण । ३. जित-शान का निरन्तर परावर्तन कर उसे अत्यन्त परिचित कर लेना। ४. मित-पठित ज्ञान का विस्तार से अनुस्मरण । ५. परिजित–पठित का क्रम से या व्युत्क्रम से परावर्तन करने की क्षमता। सिग्ध (शीघ्र) शीघ्र आदि सारे शब्द शीघ्रता की विशेष अवस्थाओं के द्योतक देखें-'उक्किट्ठ'। सिद्ध (सिद्ध) .. सिद्धि का अर्थ है-लक्ष्य प्राप्ति । जो लक्ष्य प्राप्त कर लेता है, वह सिद्ध है। सिद्ध के एकार्थक शब्द लक्ष्यप्राप्ति की ही विभिन्न अवस्थाओं के वाचक हैं। कुछ शब्दों की अर्थवत्ता इस प्रकार है १. सिद्ध-ऋद्धियों से युक्त। १. आवनि ८६१-६४ । २. विभामहेटी पृ ३४६ । ३. ज्ञाटी प ६१ : शीघ्रादीनि एकाथिकानि शीघ्रतातिशयख्यापनार्थानि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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