Book Title: Ekarthak kosha
Author(s): Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 413
________________ ३६६ : परिशिष्ठ २ लोमसिका (दे) 'लोमसिका' आदि शब्द विभिन्न प्रान्तों में ककड़ी के अर्थ में प्रयुक्त देशी शब्द हैं । ककड़ी शब्द 'कक्कुडिगा' शब्द का बदला रूप प्रतीत होता है । 'संगलिका' शब्द यद्यपि फली के अर्थ में प्रसिद्ध है लेकिन यहां ककड़ी के लिए प्रयुक्त है। लोलुग लोलुग का अर्थ है---प्रगाढ । जो प्रगाढ होता है वह अधिक होता ही है अतः प्रगाढ को भृश भी कहा जाता है । और अव्यवच्छिन्न होने के कारण उसका एक नाम निरन्तर भी है। वंझा (वन्ध्या) ___ 'वंझा' आदि शब्द एक दृष्टि से बांझ के द्योतक हैं। १. वन्ध्या-जो कभी प्रसव नहीं करती। २. अजनयित्री-जो प्रजनन नहीं करती अथवा जिसकी सन्तान जीवित नहीं रहती। ३. जानुकूर्परमाता-जो हीन अंग होने के कारण संतान का प्रसव नहीं ___ करती। इस प्रकार तीनों शब्द भावार्थ में एक अर्थ के वाचक हैं। वंदणग (वन्दनक) 'चंदणग' शब्द के पर्याय में ५ शब्दों का उल्लेख है। ये पांचों शब्द वंदना की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं के वाचक होने पर भी एकार्थक हैं।' इनका अर्थबोध इस प्रकार हैवंदनक-प्रशस्त मन, वचन और काया से गुरु का अभिवादन व स्तुति करना। चितिकर्म-दान आदि देकर सम्मानित करना। कृतिकर्म-विधिपूर्वक नमन आदि करना। पूजाकर्म-अक्षत आदि से पूजा करना। विनयकर्म-विनय करना। वंदित (वंदित) देखें- 'अच्चिय' तथा 'थुइ' । ११. प्रसाटी प २६ : वंदनकस्य इमानि भवन्ति पञ्चैव नामानि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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