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परिशिष्ट २
६. अपकर्ष - अहंकारवश ऐसा कार्य करना जिससे दूसरों की होनता
दिखाई दे |
१०. उन्नत - विनय - विमुखता अथवा नीति-न्याय से विमुख होना ।
११. उन्नाम- अभिमानवश नमन न करना ।
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१२. दुर्नाम - श्रद्धेय के प्रति अकड़ाई से नमन करना ।
स्तम्भ आदि शब्द मान के कार्य हैं, लेकिन वस्तुतः ये सभी मान के एकार्थक हैं ।
बौद्ध साहित्य में १० क्लेशवस्तु में मान को क्लेश माना है तथा उस प्रसंग में मान के वाचक अनेक शब्दों का उल्लेख है, जैसे—मान, मञ्जना, मञ्ञितत्त, उन्नति, उन्नम, धज, सम्पग्गाह, केतुकम्यता आदि । माया (माया)
'माया' शब्द के पर्याय में यहां पन्द्रह शब्द उल्लिखित हैं । यद्यपि ये सभी शब्द माया के कार्य रूप में उद्धृत हैं, लेकिन उपचार से टीकाकार ने इनको एकार्थक माना है ।"
१. माया - सामान्य अवस्था ।
२. उपधि - दूसरों को ठगने के विचार से उसके पास जाना ।
३. निकृति - किसी को ठगने के लिए पहले उसके प्रति आदर करना अथवा एक माया को छिपाने के लिए दूसरी माया करना ।
४. वलय - वक्र आचरण, व्यंगपूर्ण वचन बोलना ।
५. गहन --- दूसरा समझ न सके ऐसा सघन शब्दजाल रचना |
६. नूम -- दूसरों को ठगने के लिए अधम से अधम बर्ताव करना । (दे) ७. कल्क - हिंसात्मक उपायों से ठगना ।
८. कुरूप – माया व षड्यंत्र करने वाले व्यक्ति का चेहरा घबराहट व बैचेनी से कुरूप हो जाता है अतः माया का एक अर्थ कुरूप है ।
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१. भटी पू १०५१ : स्तम्भादीनि मानकार्याणि मानवाचका वैते ध्वनयः । २. संपू २७१-७२ ।
१. भटी पृ १०५२ : मायैकार्थाः वैते ध्वनयः ।
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