Book Title: Ekarthak kosha
Author(s): Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 410
________________ राग (राग) राग का अर्थ है – अनुराग, लोभ, आसक्ति । यहां गृहीत कुछ शब्द आसक्ति की मंदता और कुछ शब्द उसकी तीव्रता के द्योतक हैं । जैसे -- मूर्च्छा, स्नेह, गृद्धि, अभिलाषा आदि शब्द आसक्ति की तीव्रता की ओर संकेत करते हैं । देखें - 'लोभ' | राहु ( राहु ) भगवती में राहु के नौ नाम उल्लिखित हैं । इनमें दर्दुर, मकर, कच्छप आदि कुछ नाम पशुवाची हैं। राहु एक देव है । उसके विमान पांच वर्णों के हैं- कृष्ण, नील, रक्त, पीत और श्वेत । राहु के अभिवचनों की सार्थकता अन्वेषणीय है । शब्दकल्पद्रुम में उसके अनेक नामों का उल्लेख है – राहु, तमस, स्वर्भानु, सैहिकेय, विधुन्तुद, अस्रपिशाच, ग्रहकल्लोल, उपप्लव, शीर्षक, उपराग, कृष्णवर्ण, कबन्ध, अगु, असुर आदि । राहु के प्रत्यधिदेवता का नाम सर्प है । और राहु का वर्ण कृष्ण है।' इस प्रकार कृष्ण सर्प उसका पर्याय वन जाता है । इसी प्रकार अन्यान्य शब्द भी उसकी विभिन्न अवस्थाओं के द्योतक होने चाहिए । रुण्ण ( रुदित) १. रुदित - रोना, आंसू बहाना । २. रटित- सिसकते हुए रोना । गुजराती भाषा में रोने के अर्थ में 'रडे छे' - ऐसा प्रयोग होता है । ३. क्रंदन -- इष्ट वियोग में क्रन्दन के साथ रुदन । परिशिष्ट : ३६३ ४. रसित - सूअर की भांति करुणोत्पादक शब्द करते हुए रोना । ५. करुणविलपित - करुण विलाप करना । --- देखें - 'रोयमाणी ' । -रोयमाणी ( रुदती ) 'रोयमाणी ' आदि शब्द रुदन की विशेष अवस्थाओं के द्योतक हैं । जैसे— १. शक भा ४ पृ १६० । २. टीप १६७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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