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परिशिष्ट २ । ३५७
मंबर (मन्दर)
___मंदर पर्वत के एकार्थकों का अनेक स्थलों से संग्रहण किया गया है। इन सब नामों की अर्थ-परम्परा इस प्रकार हैमंदर-मंदर देव के योग से प्रचलित नाम । मेरु-मेरु देव के कारण प्रचलित नाम । मनोरम-देवताओं के मन को प्रसन्न करने वाला। सुदर्शन-स्वर्णमय एवं रत्नमय होने से दर्शनीय । स्वयंप्रभ-रत्नों की बहुलता से स्वयं प्रकाशी । "गिरिराज-समस्त पर्वतों में मूर्धन्य तथा तीर्थकरों का अभिषेक होने से
गिरिराज । रत्लोच्चय--अनेक प्रकार के रत्नों का समूह । शिलोच्चय-जिस पर पांडुशिलाओं का उपचय है। लोकमध्य-समस्त लोक का मध्यवर्ती । लोकनाभि-लोक की नाभि के समान अवस्थित । अच्छ-पवित्र । अस्त-सूर्य आदि ग्रह-नक्षत्र इससे अन्तरित होकर अस्त होते हैं। सूर्यावर्त-सूर्य-चन्द्र आदि जिसकी प्रदक्षिणा करते हैं। सूर्यावरण-सूर्य-चन्द्र आदि नक्षत्र जिसको आवेष्टित करते हैं। उत्तम-सर्वश्रेष्ठ । उत्तर-भरत आदि क्षेत्रों के उत्तर में स्थित । दिशादि-सभी दिशाओं का आदि/प्रारम्भ बिन्दु । अवतंस-समस्त पर्वतों का मुकुट । धरणिकील-पृथ्वी की धुरी।
धरणिशृंग-पृथ्वी पर सबसे ऊंचा। महव्वय (महावय)
'महन्वय' शब्द के पर्याय में इक्कीस शब्दों का उल्लेख है। महावय से क्षीणवंश तक के लगभग सभी शब्द बूढे व्यक्ति के स्पष्ट वाचक १. सूर्यटी प ७८ : मंदरादयः शब्दा परमार्थतः एकाथि कास्ततो भिन्नाभि
प्रायतया प्रवृत्ताः।
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