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३५४ : परिशिष्ट २ बहुजनाचीणं (बहुजनाचीर्ण)
। ये तीनों शब्द 'जीतव्यवहार' के द्योतक हैं। अनेक गीतार्थ आचार्यों द्वारा आचीर्ण विधि को 'जीत' कहा जाता है। उसी विधि को परम्परा से व्यवहृत करना अथवा अपनी बहुश्रुतता से उस विधि के आधार पर अन्य विधि प्रवर्तित करना 'जीत' व्यवहार कहलाता है। ये तीनों शब्द इसी भावना के प्रतीक हैं। यह युगानुकूल परिवर्तन की प्रामाणिकता की
ओर संकेत करता है। बालक (बालक)
बालक शब्द के पर्याय में आठ शब्दों का उल्लेख है। इनमें कुछ शब्द अन्य जाति (पशुजाति) के बच्चों के वाचक हैं, जैसेपिल्लक-कुत्ते का बच्चा (दे)
तर्णकका बछड़ा।
वत्सक कलभ-हाथी का बच्चा ।
___इन सभी शब्दों को अवस्थागत समानता से बालक के पर्याय में
माना है। अंत (भदन्त)
'भंत' आदि शब्द ईश्वर तुल्य व्यक्ति के अर्थ में प्रयुक्त हैं । इनका आशय इस प्रकार हैभदन्त-जो भद्र/कल्याण और सुख से युक्त है। भयान्त-जिसने भय/त्रास का अन्त कर दिया है। भवान्त-जिसने संसार का अन्त कर दिया है।
('भंत' शब्द के संस्कृत में भदन्त, भयान्त और भवान्त आदि रूप बन जाते हैं।) भय (भय)
दुःख, मृत्यु, अशांति और अनर्थ का कारण है-भय, इसलिए कारण में कार्य का उपचार करके इन शब्दों को भी भय का पर्याय माना है । यद्यपि संस्कृत के कोशकारों ने भय के पर्याय में इन शब्दों का उल्लेख नहीं किया है लेकिन चूर्णिकार एवं टीकाकारों ने अनेक स्थलों पर इन्हें
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