Book Title: Ekarthak kosha
Author(s): Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 391
________________ ३४ : परिशिष्ट २ घूमते रहते हैं और वर्षाकाल में चार महीनों तक एक स्थान पर अवस्थित हो जाते हैं । यह अवस्थान-काल पर्युषणा कहलाता है । इसके आठ पर्याय नाम हैं। उनका अर्थ-बोध इस प्रकार है१. पर्यायव्यवस्थापन–पर्युषणा के दिन मुनि अपनी दीक्षा पर्याय का व्यवस्थापन करता है। जैसे-मुझे प्रव्रज्या ग्रहण किये इतने वर्ष हो गये। २. पर्युपशमन-ऋतुबद्ध काल के द्रव्य, क्षेत्र, काल, और भाव आदि पर्याय होते हैं। मुनि वर्षावास में इन सबका त्याग करता है और वर्षावास के योग्य पदार्थों को ग्रहण करता है। ३. परिवसना-एक स्थान पर चार मास तक वास करना । ४. पर्युषणा-ऋतुबद्ध विहार से निवृत्त होकर वर्षाकाल को अत्यन्त निकट जानकर एक स्थान पर वास करना । ५. वर्षावास-वर्षाकाल के लिए एकत्र वास करना। ६.प्रथमसमवसरण-वर्ष का प्रथम दिन होने, अनेक मुनियों का एक साथ रहने तथा धर्म परिषद् के जुड़ने का प्रथम दिन होने से भी इसे प्रथमसमवसरण कहते हैं। ७. स्थापना-वर्षाकाल के कल्प की स्थापना करना। ८. ज्येष्ठावग्रह-ऋतुबद्ध काल में एक स्थान पर एक मास का निवास उत्कृष्ट काल होता है, किन्तु वर्षावास का ज्येष्ठ-बड़ा काल चार मास का होता है। पडिसेवणा (प्रतिसेवना) प्रतिसेवना जैन दर्शन का पारिभाषिक शब्द है। इसका अर्थ हैअतिचार का सेवन, व्रतों में दोष लगाना । विराधना, स्खलना, उपघात, अशोधि आदि शब्द इसके स्पष्ट वाचक हैं । शबलीकरण का तात्पर्य है-व्रतों को दोषों से चितकबरा करना। पत्ति (पत्नी) 'पत्ति' शब्द के पर्याय में कुछ शब्द पत्नी शब्द के वाचक तथा कुछ शब्द स्त्रीवाचक हैं। पत्नी, वधू, उपवधू आदि शब्द पत्नी के बोधक हैं। स्त्री, पद्मा, अंगना, महिला, नारी, प्रिया आदि शब्द सामान्यता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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