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३४८ । परिशिष्ट २
है । पांचवा नाम है-अकृत्य । जितने भी अकृत्य-अकरणीय कार्य हैं के हिंसा के द्योतक हैं, क्योंकि उनमें मानसिक, वाचिक या शारीरिक हिंसा रहती है । दुर्गति का कारण होने से दुर्गति प्रपात, वज्र की भांति कठोर व अधोगमन का हेतु होने से वज्ज (वज्र) नाम भी सार्थक है। इसे वर्ण्य भी कहा जाता है, क्योंकि हिंसा विवेकी व्यक्तियों के द्वारा वर्जनीय है । हिंसा गुणों की विराधक होने से 'गुणानां विराधना' कहलाती है ।
अपुण्य प्रकृतियों की वृद्धि के कारण पापकोप और उन प्रकृतियों के प्रति लोभ बढ़ाने से पापलोभ भी इसके पर्याय हैं।
प्रस्तुत प्रकरण में इसका एक नाम है-मच्चु (मृत्यु)। आचारांग में भी हिंसा को मृत्यु कहा है, क्योंकि हिंसा आयुष्य कर्म को प्रभावित करती है, अतः प्राणवध के 'आयुष्यकर्मस्य भेद' आदि नाम भी गुण
निष्पन्न हैं। पादव (पादप)
देखें-'दुम'। पामुद्दिका (पादमुद्रिका)
'अंगविज्जा' में 'पामुद्दिका' शब्द के पर्याय में पांच शब्दों का उल्लेख है । ये पांचों शब्द पैरों के आभूषण के वाचक हैं। इन शब्दों का आशय इस प्रकार है१. पादमुद्रिका-पैरों में पहने जाने वाली अंगूठी या बिछुवे । २. वर्मिका-जालीदार आभूषण । ३. खिखिणिका-चलते समय आवाज करने वाला आभूषण पायजेब
__ आदि । _____ इसी प्रकार 'पादसूचिका', 'पादघट्टिका' आदि शब्द भी पैरों के
भिन्न-भिन्न आभूषणों के नाम हैं । पाव (पाप)
'पाव' शब्द के पर्याय प्राणवध के विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। तथा उपचार से रौद्र कार्य करने वाले पापी के लिए भी इन शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है। इनमें अर्थभेद होते हुए भी क्रूरता व हिंसक वृत्ति की सर्वत्र समानता है
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