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परिशिष्ट २ । १६ में 'खोरय' (खोरक) शब्द का प्रयोग हुमा है। वह इस प्रकार हैएगम्मि नगरे एगो परिव्वायओ सोवण्णेण खोरएण गहिएणं हिंडति-एक नगर में एक परिव्राजक स्वर्णमय खोरक को लेकर घूम रहा था। यहां
खोरक का अर्थ कटोरा या खप्पर ही होना चाहिए। गंडि (गण्डि)
अविनीत बैल के अर्थ में ये तीनों शब्द प्रयुक्त हैं। गलि शब्द गडि से बना प्रतीत होता है। जो हांकने पर उल्टे मार्ग से जाता है और उछलता कूदता है वह गंडि है।' जो केवल खाता है, न भार ढोता है, न चलता है, वह गलि-दुष्ट बैल होता है । 'मराली' शब्द इसी अर्थ में
देशी है। गंडपक (दे)
'गंडूपक' शब्द के पर्याय में ८ शब्दों का उल्लेख है । ये सभी शब्द पैरों के विविध आभूषणों के बोधक हैं। गड्डिक (दे)
____ भाग्यशाली व्यक्ति के अर्थ में 'गड्डिक' शब्द के पर्याय में चार शब्दों का उल्लेख है। आढ्यक और सुभग ये दोनों शब्द इस अर्थ को स्पष्ट रूप से व्यक्त करते हैं । 'गड्डिक' और 'पोट्टह'-दोनों शब्द इसी अर्थ में देशी है । ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में जिसके पास गाड़ी होती थी वह भाग्यशाली माना जाता था। 'गड्डिक' शब्द उसी अर्थ का संवाहक प्रतीत होता है।
'पोट' शब्द पेट के अर्थ में देशी है । संभव है जिसे पेट भर भोजन प्राप्त होता था, वह भाग्यशाली होता था। 'पोट्टह' शब्द संभवतः इसी अर्थ की सूचना देता है। १. दशजिचू पृ५५। २. आप्टे पृ६४३ : गुणानामेव दौरात्म्याधुरि धुर्यो नियुज्यते।
असंजातकिणस्कंधः सुखं स्वपिति गौर्गडिः। ३. उशाटी प ४९ : गच्छति प्रेरितः प्रतिपथादिना डीयते च कुर्वमानो
विहायोगमनमनेनेति गण्डिः। ४. वही प ४६ : गिलत्येव केवलं न तु वहति गच्छति वेति गलि।।
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