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चांडिक्य से विवाद तक के शब्दों में क्रोध शारीरिक स्तर पर उतरने लगता है ।
पाली साहित्य में आघात, परिघात, पटिघ, पटिविरोध, कोप, पकोप, सम्पकोप, दोस, पदोस, चित्तस्स व्यापत्ति, मनोपदोस, कोध, कुज्झना, कुज्झितत्त, दुस्सना, दुस्सितत्त, विरोध, पटिविरोध, चण्डिक्क, असुरोप, आदि शब्द क्रोध के वाचक माने हैं।'
२. अभिनिर्वृत- सभी तरह से प्रशान्त । ३. दान्त - इन्द्रिय-संयम करने वाला ।
खंत ( क्षान्त )
जो विषय और कषायों से शान्त रहता है, वह क्षान्त कहलाता है । यहां ये पांचों शब्द इसी भावना के द्योतक हैं
१. क्षान्त - क्रोध- निग्रह करने वाला ।
४. जितेन्द्रिय - विषयों में अनासक्त ।
५. वीत गुद्धि - जो आसक्तियों से दूर है ।
परिशिष्ट २
खद्ध (दे)
: ३०६
ये पांचों शब्द भोजन के प्रसंग में प्रयुक्त हैं। शीघ्रता के अर्थ में ये सभी एकार्थक हैं । इनका अर्थबोध इस प्रकार है'
खद्ध - जल्दी जल्दी भोजन करना ।
वेगित - ग्रास को शीघ्रता से निगलना ।
त्वरित -- कवल को शीघ्रता से मुंह में डालना ।
चपल - शरीर को हिलाते हुए भोजन करना । साहस - बिना विमर्श किये भोजन करना । खलुंक (दे)
१.
पृ २७१ ।
२. प्रटी प्र १२६ ।
दुष्ट, वक्र आदि के अर्थ में 'खलुंक' शब्द का प्रयोग होता है । जब यह पशु या मनुष्य के विशेषण के रुप में प्रयुक्त होता है तब इसका अर्थ होता है— दुष्ट मनुष्य या पशु, अविनीत मनुष्य या पशु और जब यह
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