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३२६ : परिशिष्ट २ . हिस्संकित (निःशंकित)
शंका रहित चेतना के विशेषण के रूप में इन तीनों शब्दों का उल्लेख है।
देखें-'संकित'। णिसीहिया (निषीधिका)
स्वाध्याय-भूमि प्रायः उपाश्रय से भिन्न होती थी। वृक्षमूल आदि एकान्त स्थान को स्वाध्याय के लिए चुना जाता था। वहां जनता के आवागमन का निषेध रहता था। 'निषेध' शब्द से ही नषेधिकी शब्द बना है ऐसा प्रतीत होता है। दिगम्बरों में प्रचलित 'नसिया' शब्द इसी
का वाचक है। तंडि (दे)
__ देखें-'गंडि' । तक्क (तक्र)
छाछ के अर्थ में 'तक्क' शब्द के पर्याय में तीन शब्दों का उल्लेख है । छाछ पानी की भांति पतली होती है अतः उपचार से इसका एक नाम उदग माना है। तथा भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से 'छाछ' शब्द छासि का ही बना हुआ प्रतीत होता है। छासि→छास→छाछ । खानदेश में बोली जाने वाली अहिराणी भाषा में छाछ को आज भी 'छास' कहते
तक्क (तर्क)
तर्क, संज्ञा, प्रज्ञा, विमर्श आदि शब्द ज्ञान की विविध पर्यायों के द्योतक हैं१. तर्क-ईहा से पहले तथा अवाय से पूर्व होने वाला ज्ञान अथवा
अन्वय-व्यतिरेक पूर्वक होने वाला बोध । २. संज्ञा-वस्तु को जानने का सम्यक् बोध । ३. प्रज्ञा--हेयोपादेय का निश्चय करने वाली बुद्धि । ४. मीमांसा-वस्तु के सूक्ष्म धर्म का पर्यालोचन करने वाली बुद्धि।
बौद्ध साहित्य में भी तक्क, वितक्क, सङ्कप्प, अप्पना, व्यप्पना आदि शब्द एक अर्थ में प्रयुक्त हैं।' १. धसं पृ १६ ।
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