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परिशिष्ट २ । ३२७
तक (दे)
'तट्टक' शब्द के पर्याय में 'अंगविज्जा' में बारह हुआ है । ये शब्द भिन्न- २ आकृति वाले थालों के लगभग सभी शब्द अप्रचलित हैं । संभव है ये शब्द विभिन्न प्रकार के थालों के लिए प्रयुक्त रहे मी थाल को तट्टे कहते हैं ।
तच्चित (तच्चित्त)
शब्दों का उल्लेख
वाचक हैं । आज . विभिन्न देशों में
हों । कन्नड भाषा में आज
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तच्चित्त आदि शब्द भावक्रिया / तन्मयता के अर्थ को अभिव्यक्त करते हैं । यद्यपि चित्त, मन, लेश्या, अध्यवसाय, करण और भावना - ये सभी शब्द अलग अलग अर्थों के द्योतक हैं, लेकिन यहां सभी शब्द समस्त पद होने से तन्मयता / एकाग्रता के अर्थ में एकार्थक हैं ।'
तत्थ - तत्थ ( तत्र तत्र )
यहां तीन शब्द हैं—–तत्र-तंत्र, देशे-देशे, तस्मिन् तस्मिन् । यद्यपि इन तीनों का अर्थ भिन्न है, फिर भी विस्तार की विभिन्न अवस्थाओं के द्योतक होने के कारण इन्हें एकार्थक माना है।' ये तीनों शब्द पुष्करणी में अवस्थित कमलों की व्यापकता के बोधक हैं
१. तत्र तत्र - यहां वहां वे कमल व्याप्त थे ।
२. देशे - देशे - कहीं कहीं वे अधिक व्याप्त थे ।
३. तस्मिन् तस्मिन् — उस पुष्करिणी का एक भी भाग ऐसा नही था जो कमलों से व्याप्त न हो ।
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तमुक्काय ( तमस्काय)
अरुणवरद्वीप जम्बूद्वीप से असंख्यातवां द्वीप है । उसकी बाहरी वेदिका के अन्त से अरुणवर समुद्र में ४२ हजार योजन जाने पर एक प्रदेश ( तुल्य अवगाहन) वाली श्रेणी उठती है और वह १७२१ योजन ऊंची जाने के पश्चात् विस्तृत होती है । वह सौधर्म आदि चारों देवलोकों को घेरकर पांचवे देवलोक ( ब्रह्मलोक ) के रिष्ट नामक विमान प्रस्तट तक चली गई है । यह जलीय पदार्थ है । उसके पुद्गल अंधकारमय हैं, १. अनुद्वामटी प २७ : एकाथिकानि वा विशेषणान्येतानि प्रस्तुतोपयोगप्रकर्ष प्रतिपावनपराणि ।
२. सूटी प २७२ : अत्यादरख्यापनायैकार्थान्येवैतानि त्रीण्यपि पदानि ।
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