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| परिशिष्ट २
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थुइ (स्तुति)
स्तुति, स्तवन, वंदन, अर्चना आदि सारे शब्द गुणानुवाद के अभिव्यंजक हैं । कुछेक आचार्यों ने स्तुति और स्तव में आकारगत भेद किया है । उनके अनुसार एक श्लोक से सात श्लोक अथवा तीन श्लोक पर्यन्त जो गुणगाथा की जाती है वह 'स्तुति', और आठवें श्लोक से आगे गुणगाथा को 'स्तव' कहा जाता है। सभी व्याख्याकार इसमें एकमत नहीं हैं ।
लेकिन चूर्णिकार ने स्तुति, स्तवन आदि शब्दों को एकार्थक माना
हैं' ।
धूल (स्थूल)
मोटे व्यक्ति के लिए स्थूल शब्द के पर्याय में १५ शब्दों का उल्लेख । शरीर की स्थूलता, दीर्घता और पुष्टता के आधार पर इन शब्दों का चयन किया गया है । इन शब्दों में वहु और वरढ दोनों शब्द देशी हैं । येज्ज ( स्थैर्य ) ]
विश्वसनीय व्यक्ति के ये पांच गुण हैं। सभी समवेत रूप में एक अर्थ के अवबोधक होने से एकार्थक हैं
स्थैर्य — जो अपनी वाणी पर स्थिर रहता है ।
वैश्वासिक - जिस पर विश्वास किया जा सके । सम्मत - जिसकी बात सबके द्वारा मननीय होती है । बहुमत - लोगों के द्वारा बहुमान प्राप्त । अनुमत - सबके द्वारा समर्थित ।
पेरभूमि ( स्थविरभूमि )
स्थविर की तीन भूमिकाएं हैं जातिस्थविर, श्रुतस्थविर, पर्याय+ स्थविर । ६० वर्ष की आयु वाला जातिस्थविर, स्थानांग व समवायांग को धारण करने वाला श्रुतस्थविर तथा २० वर्ष मुनि-पर्याय पालने वाला पर्याय स्थविर कहलाता है। यहां भूमि का अर्थ है भूमिका । वह जन्म, ज्ञान और दीक्षा पर्याय से अभिव्यक्त होती है ।
१. (क) व्यभा ७।१८३ टी : एकश्लोकादिसप्तश्लोकपर्यन्ताः स्तुतिः । (ख) वही, ततः परमष्टश्लोकादिकाः स्तवाः ।
२. नंदीच पृ ४९ : अन्योन्यविषयप्रसिद्धा ह्येते एकार्थवचनाः ।
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