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: परिशिष्ट २
१. पंड
२. वातिक
३. क्लीब
४. कुंभी
५. ईर्ष्यालुक
६. शकुनि
७. तत्कर्मसेवी
णमोक्कत ( नमस्कृत)
८. पक्ष- अपक्ष
६. सौगन्धिक
१०. आसक्त
इन सबकी व्याख्या निशीथ भाष्य में प्राप्त है । प्रस्तुत कोश में 'णपु'सक' के एकार्थं नामों में अनेक नाम संवादी हैं । कुछेक शब्दों की व्याख्या इस प्रकार है—
१. चिल्लिक - (चिप्पित) जिसके जन्म से ही अंगुष्ठ व अंगुलियां चढी रहती हैं ।
२. पंडक - महिला स्वभाव वाला, मृदु वाणी वाला, सशब्द मूत्र करने वाला आदि आदि ।
३. वातिक – जिसकी जननेन्द्रिय वायु के कारण स्तब्ध रहती है ।
४. क्लीब - जो शीघ्र स्खलित हो जाता है ।
५. कुंभी - जिसकी जननेन्द्रिय सूजन से युक्त होती है ।
६. ईर्ष्यालुक - बलात् ब्रह्मचर्य का पालन करने के कारण जो नपुंसक हो जाता है ।
७. पाक्षिक - अपाक्षिक - शुक्ल या कृष्णपक्ष में जिसके मोह उदय अति
तीव्र होता है और अपाक्षिक में कम होता है । निरोध करने के कारण कालान्तर में वह नपुंसक हो जाता है |
णाण (ज्ञान)
इस प्रकार अन्यान्य शब्द भी विभिन्न प्रकार के नपुंसकों के वाचक हैं । कुछ नाम उनके स्वभाव की सूचना देते हैं और कुछ उनकी शरीरगत अवस्थाओं के द्योतक हैं ।
विशेष विवरण के लिए देखें - निभा ३५६१-३६०० ।
देखें-- ' अच्चिय' |
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११. बचित १२. चिप्पित
१३, मंत्र से वेदोपहत १४. औषधि से वेदोपहत
१५. ऋषि द्वारा शप्त
१६. देव द्वारा शप्त ।
ज्ञान, संवेदन, अधिगम, चेतना और भाव — ये पांचों शब्द ज्ञान
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