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३१४ : परिशिष्ट २ घट्ट (धृष्ट)
'घट्ट' आदि शब्द परिकर्म के विभिन्न प्रकार हैं। इसका अर्थबोध इस प्रकार है१. घृष्ट-गोबर आदि से लीपना। २. मृष्ट-खड़िया से पोतना । ३. नीरज-रज रहित करना । ४. संमृष्ट-ऊबड़-खाबड़ भूमि को समान करना ।
५. संप्रधूपित-दुर्गन्ध आदि दूर करने के लिए धूप खेना। . घाय (घात)
इसके अन्तर्गत गृहीत सभी शब्द मारने की विभिन्न अवस्थाओं के द्योतक हैं। १. घात-चोट पहुंचाना। २. वध-लकड़ी आदि से मारना ।
३. उच्छादन-निर्मूल नाश । चाउम्मासित (चातुर्मासिक)
सामान्यतः चतुर्मास चार मास का होता है अतः उसे चातुर्मासिक कहा जाता है। प्राचीन काल में साल का प्रारम्भ चातुर्मास से होता
था अतः वर्षावास का एक नाम सांवत्सरिक भी है। चंडाल (चण्डाल)
प्रस्तुत शब्द कार्य के आधार पर विभाजित चंडाल की विभिन्न जातियों के द्योतक हैंहरिकेश-चण्डाल की जाति । चाण्डाल–फांसी और शूली देने के लिए नियुक्त । श्वपाक-कुत्ते का मांस पकाकर खाने वाला। मातंग-निषिद्ध कार्य करने वाला। बाहिर-गांव के प्रान्तभाग में रहने वाला। पाण-चंडाल के अर्थ में देशी शब्द ।
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