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१८ : परिशिष्ट २ अणसंमद (जनसम्म)
__ये सभी शब्द विभिन्न प्रकार के जन समुदाय और उससे होने वाले कोलाहल के प्रतीक हैं । जनव्यूह, जनसंमर्द, जनोमि, जनोत्कलिका आदि शब्द सामान्यतः जनसमुदाय को अभिव्यक्त करते हैं तथा भिन्नभिन्न स्थानों से आए लोगों का एक स्थान पर मिलन जन-सन्निपात है। कोलाहल के आधार पर जनसमुदाय का बोध होता है, इसलिए जनबोल
व जनकलकल भी इसी के अन्तर्गत पर्याय शब्दों में लिए गए हैं। जण्ण (यज्ञ)
'जण्ण' आदि तीनों शब्द विभिन्न प्रकार के उत्सवों के वाचक हैं। इनका अर्थभेद इस प्रकार हैयज्ञ-नागादि की पूजा का उत्सव । क्षण-जिस उत्सव में अनेक लोगों को भोजन कराया जाता है तथा
दान किया जाता है। उत्सव-इन्द्र, कार्तिकेय आदि का महोत्सव । जल्ल (दे)
ये तीनो शब्द मैल के लिए प्रयुक्त होने वाले देश्य शब्द हैं । । जल्ल-जो आकर पसीने के साथ चिपक जाता है।
मल्ल-स्वल्प प्रयत्न से दूर किया जाने वाला मैल ।'
कमढ-चिकना मैल । जवइत्तए (यापयितुम्)
जवइत्तए और लाढेत्तए-दोनों एकार्थक हैं। लाढेत्तए शब्द । 'लाढ' शब्द से बना प्रतीत होता है। भगवान् महावीर ने लाढ देश में विहार कर अनेक कष्ट सहे थे, अतः आगे चलकर यह शब्द कष्ट-सहने वालों के लिए श्लाघा-सूचक बन गया।' ____ उत्तराध्ययन की बृहद्वृत्ति में लाढे का अर्थ सत् अनुष्ठान से प्रधान किया है।' १. राजटी पृ ३१ २. उटि पृ १८। ३. उशाटी १४१४॥
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