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२९८ : परिशिष्ट २ __ में 'ओनोमोटोपिया' कहते हैं, जैसे-चमचमाना इत्यादि । उखडुमड
शब्द बार बार के अर्थ में देशी है। उच्चारणमात्र से यह शब्द अपना
अर्थ अभिव्यक्त करता है। उग्गविस (उपविष)
'उग्गविस' आदि चारों शब्द विष की उत्तरोत्तर भयंकरता को घोतित करते हैं१. उग्रविष-दुर्जर विष। २. चण्डविष-शरीर में शीघ्र ही व्याप्त होने वाला विष । ३. घोरविष-आगे से आगे हजारों पुरुषों तक फैलने वाला विष ।
४. महाविष-शीघ्र मारने वाला विष ।' उग्गह (अवग्रह)
___ इन्द्रियायोगे दर्शनान्तरं सामान्यग्रहणमवग्रहः-इन्द्रिय और अर्थ का सम्बन्ध होने पर नाम आदि की विशेष कल्पना से रहित सामान्य ज्ञान को अवग्रह कहते हैं । यह मतिज्ञान का भेद है तथा इस अवस्था में निश्चयात्मक ज्ञान नहीं होता । तत्वार्थ भाष्य में अवग्रह, ग्रह, ग्रहण, आलोचन, और अवधारण को एकार्थक माना है ।'
'उग्गह' के सभी शब्द सामान्य रूप से एकार्थक होने पर भी अवग्रह के विभाग करने पर भिन्न-२ अर्थों के वाचक बनते हैं।'
अवग्रह के दो भेद हैं- व्यंजनावग्रह और अर्थावग्रह । प्रस्तुत एकार्थकों में प्रथम दो व्यञ्जनावग्रह से और तीसरा, चौथा भेद अर्थावग्रह से सम्बन्धित हैं। पांचवा भेद 'मेधा' उत्तरोत्तर विशेष-सामान्य अर्थावग्रह से सम्बन्धित है। विशेष व्याख्या के लिए देखें-नंदीचू पृ ३५।
१. भटी पृ १२३५ । २. तत्त्वार्थ भाष्य १११५ । ३. नंदीच पृ ३५ : ओग्गहसामण्णतो पंच वि णियमा एगद्विता । उग्गहविभागे पुण कज्जमाणे उग्गहविभागंसेण भिण्णत्था भवंति ।
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