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३०४ , परिशिष्ट ।
१२. उत्तम-सर्वश्रेष्ठ । १३. महानुभाग-महाप्रभावशाली । ओवीलेमाण (अवपीडयत्)
___ 'ओवीलेमाण' आदि शब्द पीड़ा देने की विभिन्न अवस्थाओं के वाचक हैं । देखें-'आउडिज्जमाण' । ऋतुसंवत्सर (ऋतुसंवत्सर)
देखें-'उउमास'। कंची (काञ्ची)
ये सभी शब्द विभिन्न प्रकार की करधनी (कटि के आभूषण) के वाचक हैं। प्राचीन काल में करधनी पहनने की परम्परा अनेक जातियों में थी और आज भी यह परम्परा प्रचलित है।
देखें-'कडीय' । कंति (कान्ति)
___ कान्ति, दीप्ति आदि शब्द अवस्था भेद से प्रकाश के वाचक हैं।
देखें-'जुइ'। कंदण (क्रन्दन)
देखें-'रोयमाणी'। कक्क (कर्क)
कक्क (वक्क ?) और रत्न-ये दोनों शब्द इन्द्रनील आदि सर्वोत्तम रत्न के लिए प्रयुक्त होते हैं । कक्क (कल्क)
देखें-'माया'। कण्हराति (कृष्णराजि)
__कृष्ण का अर्थ है-काली और राजि का अर्थ है-रेखा। काले - रंग की पुद्गल रेखा को कृष्णराजि कहते हैं । भिन्न-भिन्न स्थितियों के
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