________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
द्वादशानुपेक्षा भाषाटीका सहिता.
भूलै है सो यह तेरे कहा आग्रह है ? अथवा तोकूं पिसाच लाग्या है जाकी किछु औषधि नाहीं ऐसा है ॥ आगे अन्यप्रकार कहै हैं -
क्षणिकत्वं वदन्त्यार्या घटीघातेन भूभृताम् । क्रियतामात्मनः श्रेयो गतेऽयं नागमिष्यति ॥ ११ ॥
भाषार्थ - या लोकविषै राजानिकै घड़ावलि ( घंटा ) बाजै है सो क्षणिकपणाकूं कहै है जो हैं " लोक हो ! अपना कल्याणकूं करौ यह घड़ी गयी है सो फेरि न आवैगी " ऐसें घड़ीके घातकरि पुकारै है | आगे फेरि उपदेश करे हैं
1
यद्यपूर्व शरीरं स्याद्यदि वात्यन्तशाश्वतम् युज्यते हि तदा कर्तुमस्यार्थे कर्मनिन्दितम् ॥ १६ ॥ भाषार्थ - हे प्राणी जो यह शरीर अपूर्व होय पहिले कदे न पाया होय अथवा अत्यंत शाश्वता है कदे विनरौ नाहीं तौ या शरीरकैअर्थ निन्द्यकर्म भी करबो युक्त है सौ तौ है नाहीं. पहिले अनेकवार शरीर धारे अर विनशे अर अब भी विनशैहीगा तातैं ऐसेकेअर्थि निन्द्यकार्य करना उचित नाहीं, अपना कल्याण होय ऐसा कार्य करना ||
आंगे फेरि इस ही अर्थकों सूचता कहै हैंअवश्यं यान्ति यास्यन्ति पुत्र स्त्रीधनवान्धवाः । शरीराणि तदैतेषां कृते किं खिद्यते वृथा ॥ १७ ॥
For Private And Personal Use Only