Book Title: Dwadashanupreksha Bhasha Tika Sahit
Author(s): Shubhchandracharya
Publisher: Jain Granth Ratna Karyalay

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Page 79
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैनग्रन्थरत्नाकरे. भाषार्थ--प्राणीनिकै देशजाति कुलादि सहित मनुष्यपणा भी होते बडी आयु पांचं इन्द्रियनिकी पूरी सामग्री बहुरि विशिष्ट भली बुद्धि परिणाम शीतल मंदकपायरूप होय है. सो काकतालीय न्याय सरीखा जानना । कोई समय तालका फल टूटि पृथ्वीपर पड़े तिसही काल तहां काकका आगमन होय अर काक ताकू भोगै यह जोग मिलना दुर्लभ है तैसें जानना ॥ ततो निर्विषयं चेतो यमप्रशमवासितम् । यदि स्यात्पुण्ययोगेन न पुनस्तत्त्वनिश्चयः ॥ ६ ॥ भाषार्थ-तिस पूर्वोक्त बुद्धि आदि सामग्री भी विष. यनित विरक्तता अर व्रत सहित परिणाम अर प्रशम विशुद्ध भावकरि वासित चित्त होय सो बडे पुण्यके योगकार होय है बहुरे ऐसे होते भी तत्त्वका निश्चय नाही होय है यह होना दुर्लभ है ॥ अत्यन्तदुर्लभेष्वेषु दैवाल्लब्धेष्वपि क्वचित् । प्रमादात्प्रच्यवन्तेत्र केचित्कामार्थलालसाः ॥७॥ भाषार्थ-पर्वोक्त सामग्री अत्यन्त दम है ते भी देवके योग पावतै सन्तै कोई काम अर अर्थविष लुब्ध भये सन्ते सम्यक्मार्ग” च्युत होय हैं, विषय कपानिमैं लगि जाय हैं। मार्गमासाद्य केचिच्च सम्यग्रत्नत्रयात्मकम् । त्यजन्ति गुरुमिथ्यात्वविएव्यामूढचारः॥८॥ For Private And Personal Use Only

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