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द्वादशानुप्रेक्षा भाषाटीकासहिता. ३७ प्रत्यक्ष जन्ममरण देखे है जो जन्मै है सो ही मरै है दूना कोई नाही, तौऊ अपना एकपणा नाहीं देखे है सो यहु
बडा अज्ञान है॥
अज्ञातस्वस्वरूपोऽयं लुप्तबोधादिलोचनः । भ्रमत्यविरतं जीव एकाकी विधिवञ्चितः ॥ ८॥
भाषार्थ—एकपणा अपना न देखणैविषै कारण यह है जो यह प्राणी नाही जान्या है अपना स्वरूप जानै लुप्त भये हैं ज्ञानादि लोचन जाके ऐसा भया सन्ता कर्म करि ठग्या एकाकी संसार में निरन्तर भ्रमै है. तहां अज्ञान ही कारण भया ॥ यदैक्यं मनुते मोहादयमथुः स्थिरतरैः। तदा स्खं स्वेन बध्नाति तद्विपक्षैः शिवी भवेत् ॥९॥
भाषार्थ——यह मूढ प्राणी जिसकाल थिर अथिर पदार्थनिकरि मोहथकी अज्ञानथकी आपके एकपणा मानै है तिसकाल आप अपने आपाकू अपने ही भावनिकरि बांधे है. अर्थात् कर्मबंधकू करै है. अर जो अन्यतैं एक पणाकू नाहीं मानैं है सो बंध नाहीं करै है मोक्षस्वरूप होय है कर्मनिकी निर्जरा करै है. यह एकत्व भावनाका फल है ।।
एकाकित्वं प्रपन्नोऽस्मि यदाहं वीतविभ्रमः । तदैव जन्मसंबन्धः स्वयमेव विशीर्यते ॥१०॥
भाषार्थ-एकत्व भावनाकरि वीत्या है विभ्रम नाका ऐसा भया सन्ता जिसकाल ऐसी भावना करै नो ,मै
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