________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
m.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
द्वादशानुप्रेक्षा भाषाटीकासहिता.
तितिक्षामाईवं शौचमार्जवं सत्यसंयमौ । ब्रह्मचर्य तपस्त्यागाकिञ्चन्यं धर्म उच्यते ॥२०॥
भाषार्थ-क्षमा मार्दव शौच आर्जव सत्य संयम ब्रह्मचर्य तप त्याग आकिंचन्य ए दशप्रकार धर्म है इनिका स्वरूप विशेष तत्त्वार्थ सूत्रकी टीकातें जानना ॥
आर्याछन्दः । यद्यत्स्वस्यानिष्टं तत्तद्वाचित्तवृत्तिभिः कार्य । स्वमेऽपि नापरेषामिति धर्मस्याग्रिमं लिङ्गम्॥२१॥
भाषार्थ-धर्मका मुख्य प्रधान चिह्न यह है कि जो जो आपकै अनिष्ट है आपकू बुरा लागै है सो सो परकै वचन मन कायकी क्रियाकरि सुपनेविषै भी न करना ॥ ___ अब धर्मभावनाके कथनकू पूर्ण करै हैं तहां समान्यकरि कहै हैं,--
शार्दूलविक्रिडित छन्दः। धर्मः शर्मभुजङ्गपुङ्गवपुरीसारं विधातुं क्षमो धर्मः प्रापितमर्त्यलोकविपुलप्रीतिस्तदाशंसिनं । धर्मः स्वर्नगरीनिरन्तरसुखास्वादोदयस्यास्पदम् धर्मः किं न करोति मुक्तिललनासंभोगयोग्यंजनम् २२ ___ भाषार्थ-यह धर्म है सो धर्मात्मा पुरुषनिकै धरणीन्द्रिकी पुरीका सार सुखळू करनेकू समर्थ है. बहुरि धर्म है सो तिस धर्मके बांछक अर पालनेवाले पुरुषनिळू प्राप्तकरी है मनुष्यलोकविषै विस्तीर्ण बडी प्रीति जानै ऐसा है. बहुरि धर्म
For Private And Personal Use Only