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द्वादशानुप्रेक्षा भाषाटीकासहिता. २३ भाषार्थ-हे प्राणी ! जो कोई बलवान् कालकी आज्ञा लोपनेवालो नै देख्यो होय तथा सुग्यो होय ताकू तू आराध्य अर स्वास्थ्यकू सेय, नम्रीभूत होय तिटि. अर जो ऐसा देख्या सुण्या न होय तो तेरा खेद करना वृथा है ॥
फेरि कहै हैं,-- परस्येव न जानाति विपत्तिं स्वस्य मूढधीः । वने सचसमाकीर्णे दह्यमाने तरुस्थवत् ॥ १० ॥ भाषार्थ-यह मूढबुद्धि पुरुष जैसैं परके जाणै तैसें आपके आपदा मरण है ताकू न जाणै है. इहां दृष्टान्त जैसैं-बहुत जीवनिकरि भस्वा वन दग्ध होता होय तहां वृक्ष उपरि बैठा पुरुष ऐसे देखै ये वनके जीव बलै हैं अर यह न जाणे जो यह वृक्ष बलैगा तब मैं भी या मैं बलूंगा, यह बड़ी मूर्खता है।
फेरि कहै हैं,यथा बालं तथा वृद्धं यथाढयं दुर्विधं तथा। यथा शूरं तथा भीरु साम्येन असतेऽन्तकः ॥११ ।।
भाषार्थ---यह काल है सो जैसैं बालककू ग्रसै है तैसैं ही वृद्धकू ग्रसै है. बहुरि जैसैं धनवानकू ग्रसै है तैसें ही दरिद्र• ग्रसै है. बहुरि जैसे सूरवीरकू ग्रसै है तैसें ही काय रकू ग्रसै है ऐसें सर्वकू समानभावकरि ग्रस है. याकै हीनाधिक कोऊ नाही, याहीत याका नाम समवर्ती क. हिये है ॥
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