________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जैनग्रन्थरत्नाकरे.
अब कहै हैं याकू कोई निवारनेवाला भी नाहीं है, गजाश्वरथसैन्यानि मन्त्रोषधवलानि च । व्यर्थो भवन्ति सर्वाणि विपक्षे देहिनां यमे ॥१२॥
भाषार्थ-इस कालकू प्राणीनिके प्रतिकूल होते हाथी घोडा रथ सेन्या बहुरि मंत्र औषध पराक्रम ए सर्व होय हैं. काल आय पूरा होय तब कोई भी निवारि सकै नाही. यह प्राणी वृथा ही शरण हेरै है ॥
फेरि कहै हैं,--- विक्रमैकरसस्तावज्जनः सर्वोऽपि वल्गति । न शृणोत्यदयं यावत्कृतान्तहरिगर्जितम् ॥१३॥
भावार्थ--यह सर्व ही जन पराक्रमका है अद्वितीय रस जाकै ऐसा उद्धत हुवा तेतै ही दौडै है कूदै है जैतै कालरूपी सिंहकी दयारहित जैसैं होय तैसैं गर्जना नाही सुणै है. काल आया यह शब्द सुणते ही सर्व भूलि जाय है।
फेरि कहै हैंअकृताभीष्टकल्याणमसिद्धारब्धवाञ्छितम् । प्रागेवागत्य निस्त्रंसो हन्ति लोकं यमः क्षणे ॥१४॥ __भावार्थ-यह काल है सो ऐसा निर्दयी है जो नाही किया है अपना बांछित भला कल्याणरूप कार्य जानै अर नाहीं पूर्ण भया है आरंभ्या कार्य जाकै ऐसा लोककू पहिले ही आयकरि क्षणमात्रमैं हणै . लोकके कार्य जसक तैसैं रहि जाय हैं बीचि ही मरण होय जाय है ।
For Private And Personal Use Only