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जैन ग्रन्थरत्नाकरे.
सो कमलिनीके पत्रदिषै मिल्या जो पाला ताकी ज्यों तत्काल ढलकि जाय है यह प्राणी वृथा स्थिरकी बुद्धि करे है || आंगें मनोज्ञ विषयनिकी व्यवस्थाका दृष्टान्त कहे हैं, - मनोज्ञविषयैः सार्द्धं संयोगाः स्वमसन्निभाः । क्षणादेव क्षयं यान्ति वञ्चनोद्धतबुद्धयः ॥४०॥ भाषार्थ -- प्राणीनिकै मनोहर इन्द्रयनिके विषयनिके साथि संयोग हैं ते स्वप्नके संयोग सारिखें हैं क्षणमात्र में क्षय नाय हैं. कैसे हैं ? ठगनेविषै उद्धत है बुद्धि जिनिकै. जैसें उग कछू तत्काल चमत्कार दिखायदे पीछें सर्वस्व हरै, तैसें हैं. यह प्राणी तिनका विश्वास वृथा करै है ||
फोर अन्य सामग्रीको व्यवस्था कहै हैं
घनमालानुकारीणि कुलानि च बलानि च । राज्यालङ्कारवित्तानि कीर्त्तितानि महर्षिभिः ॥४१॥
भाषार्थ - प्राणीनिकै कुल कुटुंब हैं बहुरि बल सेना हैं ते, बहुरि राज्यके अलंकार छत्र चामर आभूषण वित्तधन सम्पदा हैं ते मेघके बादले निकी पंकति सारिखे हैं, देखते देखते विलय जाय हैं. ऐसें महर्षि जे बडे ऋषीश्वर तिनिकर कहे हैं. यह मूढ प्राणी वृथा नित्यकी वृद्धि करै है ॥
आगे शरीरकूं निःसार कहै हैं
१. ओसकी बूंद .
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