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गाथा-३]
३-सप्त द्वाराणि
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यतः-- “सम्यग-ज्ञानत एव सम्यगप्ररूपणा
प्रतिपत्तिश्च भवति" इति-भावः ॥ ३ ॥
धर्मद्रव्य संरक्षण महिमा चेगय-कुल-गण
____संघे उवयारं जो कुणइ णिरासंसी । पत्तेयबुद्ध गणहर तित्थयरो
वा तओ होइ ॥ भावार्थ- चैत्य-कुल-गण-संघ की भक्ति जो व्यक्ति है निष्काम बुद्धि से करता है, वह इसके फल स्वरूप प्रत्येकबुद्ध-गणधर या तीर्थकर बनता है।
-श्री प्रावश्यक नियुक्ति सात क्षेत्र "सप्तक्षेत्री-जिनबिम्ब-जिनभवनाऽऽगम-साधु-साध्वीश्रावक-श्राविका-लक्षण"
जिन बिंब (मूर्ति), जिन मंदिर, सम्यक्झान, साधु, साध्वी, श्रावक एवं श्राविका-ये सातक्षेत्र हैं।
-धर्मरत्न प्रकरण अधि० २
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