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प्रवचन-४९
अभिमान की तरह मद भी भयानक शत्रु है। मदान्ध मनुष्य मात्र अपनी विशेषता को लेकर अहंकारी बनता है, इतना ही नहीं, वह दूसरों के प्रति आक्रमक भी बनता है। यदि उसका जन्म उच्च जाति में हुआ है तो वह अपनी जाति को लेकर अहंकारी बनेगा और जो नीच जाति में जन्मे होंगे उनके प्रति तिरस्कार करेगा। कभी उन पर हमला भी कर देगा। मारेगा, पीटेगा और गालियाँ भी बकेगा। वैसे, किसी भी बात का मद होगा तो ये दो प्रतिक्रियाएँ आयेंगी हीअहंकार और तिरस्कार | भगवान उमास्वातीजी ने ठीक ही कहा है :
'जात्यादिमदोन्मत्तः पिशाचवद् भवति दुःखितश्चेह।
जात्यादिहीनतां परभवे च निःसंशयं लभते ।।' जाति, कुल आदि किसी भी मद से उन्मत्त जीव पिशाच की तरह दुःखी होता है और परलोक में निःशंक वह जाति वगैरह की हीनता प्राप्त करता है। कहानी एक भूत की :
एक सेठ थे। उन्होंने मंत्रसाधना से एक भूत को सिद्ध किया। भूत, हालाँकि देवयोनि का जीव था, परन्तु देव भी अनेक प्रकार की कक्षा के होते हैं। भूत निम्न देवयोनि का देव था। सेठ पर प्रसन्न तो हुआ और सेठ ने बताये उतने कार्य भी कर दिये। जब कोई कार्य बचा नहीं तब उसने सेठ से कहा : 'मुझे कोई काम बताइए, वरना मैं तुम्हें ही खा जाऊँगा।' उन्मत्त भूत था न? उन्मत्त व्यक्ति दूसरों के साथ कर्कश-कठोर भाषा में ही बात करते होते हैं। वे लोग दूसरों का गौरव कभी नहीं करेंगे । हाँ, कभी उनको किसी की अनिवार्य रूप से आवश्यकता पड़ जाये और नम्रता से बात कर लें, वह बात अलग है। यह भूत देव था। फिर भी उन्मत्त था। उसने सेठ को चेतावनी दे दी : 'कोई काम बताओ, अन्यथा खा जाऊँगा।'
सेठ पहले तो घबराये । परन्तु तुरंत ही स्वस्थ हो गये। सामने भूत था । घबराने से बचने का मार्ग नहीं मिलता है। घबराहट से तो बुद्धि भ्रमित हो जाती है। सेठ ने शान्त चित्त से सोचा...एक उपाय मिल गया। वे बड़े प्रसन्न हो गये। उन्होंने भूत के सामने देखा | भूत बोला : 'कोई काम बताते हो?'
सेठ ने कहा : 'हाँ, एक पचास हाथ ऊँचा लकड़ी का खंभा बना कर ले आओ।'
भूत ले आया लकड़ी का खंभा ।
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