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माहित्य और कला साधना को उज्जयिनी ग्रादि प्रसिद्ध माम्गतिक नगरो मे भी अधिक ऊ चाई पर पहु चा दिया ।
प्राचार्य हेमचन्द्र और कुमारपाल
प्राचार्य हेमचन्द्र की साहित्य साधना दो महान् राजाम्रो की छाया गे परिवद्धित एव विकसित हुई । प्रथम राजा मिद्धराज जयसिंह (वि० स० 1151-1199) तथा दूसरा राजा कुमार पाल जो कि सिद्धगज के बाद अगहिरलपुर के सिंहासन का अधिकारी हुया । इन दोनो राजाप्रो की छत्रछाया मे रहकर हेमचन्द्र ने अपने ग्रन्थ रत्नो का निर्माण किया । मिद्धराज और हेमचन्द्र के सम्बन्धो की चर्चा ऊपर की जा चुकी है यहा कुमारपाल और हेमचन्द्र के सम्बन्धो पर विस्तार से विचार कर लेना समीचीन होगा।
सिद्धराज जयसिंह के पश्चात् अणहिल्लपुर की गद्दी का उत्तराधिकारी कोई नही था क्योकि जयसिंह की अपनी कोई भी सन्तान नहीं थी। पुरातन प्रवन्ध सग्रह के अनुसार जयसिंह की मृत्यु के बाद 18 दिनो तक राज्य सिंहासन पर उसकी पादुका रखी गयी। 19 वें दिन कुमार पाल ने अपने बहनोई कान्हडदेव की सहायता से उस पर अधिकार प्राप्त किया । कुमार पाल प्राप्त प्रमाणो के आधार पर जयसिंह का भतीजा था परन्तु जयसिंह उसका कट्टर शत्रु था। अपने जीवन के अन्तिम दिनो मे वह वरावर कुमारपाल को मरवा डालने का प्रयत्न करता रहा था । जयमिह की इस शत्रुता का क्या कारण था इसे जानने के लिए कुमार पाल के जीवन चरित पर सक्षिप्त दृष्टि डाल लेना अनुचित न होगा । प्राचार्य हेमचन्द्र के साथ उसके प्रथम साक्षात्कार की समस्या भी इसी मन्दर्भ मे हल हो जायेगी।
कुमारपाल
कुमारपाल के शासनकाल तथा उसके जीवन का विस्तृत परिचय देने वाले अब तक 21 अभिलेख गुजरात से प्राप्त हो चुके है । इनमे दो ताम्रपत्रो पर तथा शेप शिलानो पर अकित है। इनमे 1151 तथा 1125 ई० के दो प्रस्तर लेख तया 1156 ई० का एक ताम्रपत्र कुमार पाल के जीवन से सवधित विवरण प्रस्तुत करने वाले है । शेप उसके शासन काल का विवेचन प्रस्तुत करते हैं ।
कुमार पाल से जीवन का विस्तृत परिचय साहित्यिक कृतियो द्वारा प्राप्त होता है । इनमे तीन ग्रन्थ स्वय कुमार पाल के समकालीन हैं
(१) प्राचार्य हेमचन्द्र का प्राकृत-द्वयाश्रयकाव्य या कुमारपाल चरित ।