Book Title: Deshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Author(s): Shivmurti Sharma
Publisher: Devnagar Prakashan
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। 269 णि निर,निस् -णि रगी।निर्स गी, रिगरिंगणनिर्गतम् ।
हिस्सको नि णक. (निर्भर.) रिगळुहिन निष्ठ्यूत, गिट्ट हो। निस्तब्धः।
रिणफरिसोनिर्-स्पर्श । दुदुर्- दुम्मुनोदुर्मुस. (बन्दर),दुम्मइपिए। दुर्मति, दूदुर- दूमलो, दूहलो।दुर्भग , दूहट्ठो।दुर्ह दय । विवि- विक्केणुग विक्री, विश्वभविष्कभ,
विच्चड्डो। विच्छई , विलुत्तहिनो विलुप्तहृदय । अगयो । अकाय (राक्षस), अइरजुवई,अचिरयुवती, अगहणो
अग्रहण , अचल अचल (गृह) माध्या ग्रार पोटोविन प्राटोपित (कोधित), श्रारेइग्र पारेचित (मुकुलित)
प्रारोहोमारोह (स्तन) अहिट अभि अहिासण. अभीदण्य, अहिहाण अभिधानम् । केवल दो ही उदाह
रण हैं।
अहि अघि के उदाहरण एक भी नहीं है । प्रति- प्राणिन अतिनीत । सुमु- सुदारुणो। सुदारणो (चाण्डाल), सुदुम्मणिग्रा,
मुलनमजरी आदि में भी 'सु' का प्रयोग लक्षित किया जा सकता
है । पर ये शब्द अज्ञात व्युत्पत्तिक है । उ.उत्, उद्- उग्घयो। उद्घात (समूह), उग्धुट्ट उद्धृष्ट (साहस), उच्छित्त
Lउत्क्षिप्त (विक्षिप्त), उत्थरघो/उत्-स्थग्, उद्दिसिन उत्
दिश । ऊ7उन्- ऊसविना उत-अप् (उद्भ्रान्त)
सुभिन्न उद्-सुम्भ । ऊ.उप- ऊहट्ट Lउप-हस । पडिप्रति पडिक्कियो प्रतिक्रिया, पडिखध / प्रतिस्कघ,पडिच्छन्दो/प्रतिच्छन्द
(मुखम्), पडिरिणअसण/प्रतिनिवसन (रात्रि का वस्त्र)। देसो पडि- पडिच्छनो-समय पडित्थिरो-सदृश ।
पडिसत-प्रतिकूलं, पडिसारो-पटुता आदि । परिम्परि- परिहण,परिधानं, परिहारइत्तिमापरिहार्या स्त्री।
परिहच्छ।परिहस्त (पटु) आदि । उव/उप- उवकय /उपकृत, उवदीव, उपद्वीप,

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