Book Title: Deshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Author(s): Shivmurti Sharma
Publisher: Devnagar Prakashan

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Page 287
________________ । 275 "अर्थगत अध्ययन" ध्वनि पीर पद यदि किसी शब्द के बाह्य अग है तो अर्थ उसकी प्रात्मा है । जिस प्रकार जीवात्मा के बिना शरीर का कोई मूल्य नही उसी प्रकार अर्थ के बिना शन की कोई महत्ता नहीं है । महाभाष्यकार पतजलि ने 'सिद्ध शब्दार्थ' सवध सूत्र में यही घनित किया है । शब्द और अर्थ दोनो का शाश्वत सम्बन्ध है । यह कहना तो उपयुक्त नहीं कि किनी शब्द विशेष का एक ही अर्थ नित्य है उसका अर्थ परिवर्तित हो माता है, पर शब्द नदेव सार्थक ही होता है । किसी शब्द से उसके किसी अर्थविशेष को नित्यता घोर अनित्यतता के विवाद से परे, मामान्य रूप से यह स्वीकार किया जाता रहा है कि शब्द और अर्ध का सम्बन्ध माश्वत है अर्थात् शब्द सदैव अर्थवान् होता है । वा और अर्थ के इमी शाश्वत सम्बन्ध की चर्चा कालिदास ने अपने महाकाव्य रघुवंशम् के प्रारम्भिक श्लोक मे की है "वागर्थाविव सक्तो वागर्थप्रतिपत्तये" प्रादि । अब एक प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है-प्राचिर शब्द गे अयं के सम्बन्ध का नियामक कौन है ? महाभाष्यकार पतञ्जलि इस सम्बन्ध का नियामका लोक को मानते हैं । लोक मे शब्दो का व्यवहार ही लिमी शन्द ने उसके प्रथ का नियामक होता है । अत. लोकव्यवहार को ध्यान में रखकर ही किमी शब्द के अर्थ की परीक्षा की जानी चाहिए । यही व्यवस्था निरक्तकार यास्क ने 'अर्थनित्य परीक्षेत' कह कर दी। 'शब्द और अर्थ का सम्बन्ध गुरुत्वाकपंग नियम के अनुसार प्राकृतिक नहीं हैं। यदि ऐसा होता तो किसी शब्द के उच्चारण करते ही अनाया मर्वत्र सर्वदा एक अर्थ की ही प्रतीति हो जाती । शब्दार्य सम्बन्ध देशकालावचिन्न न होकर भी, किसी व्यक्ति विशेप की इच्छा पर निर्भर न होकार, समाज पर आधारित है। ध्वनियो का अर्थों से कोई प्राकृतिक सम्बन्ध नहीं, फिर भी ध्वन्यानुकरणात्मक, भावाभिव्यजक शब्दो मे ध्वनि का प्रभाव श्रा ही जाता है और किसी भी भापा मे ऐसे शब्दो की नगण्य मात्रा नही होती। उनकी प्रर्थ वोधन प्रक्रिया पर विचार करना ही चाहिए। शव्द वस्तुत अर्थों के सकेत है । जव सकेतो मे मस्ति प्रर्थों की बोधनक्षमता कथचित घट जाती है या नही रहती तो सकेत परिवर्तित कर दिये जाते है या सकेत का नये अर्थ से सम्बन्ध स्थापित कर दिया जाता है । यही वागर्थप्रतिपत्ति है-शब्द से अर्थ का प्रतिपादन है ।"2 ___डा वीरेन्द्र श्रीवास्तव का यह कथन उपर्युक्त कथन का ही समर्थन करता है । शब्दो से अर्थ का सम्बन्ध-ज्ञान पूर्णत लोक व्यवहार पर आधारित है । लोक 1. महागाप्य प्रथम आह्निक । 2. अपभ्र श भाषा का अध्ययन-डा. वीरेन्द्र श्रीवास्तव, 243

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