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[ 281 शब्द बताते है ?..... ........."पुन कुछ और शब्द संस्कृत मूल तक पहुचते है, यपि वे प्रापत वयाफरगो द्वारा स्थापित किये गये ध्वनि नियमो से व्युत्पन्न नही पिचे जा सकते ।.... ... ... ." इस तरह उदाहरण स्वरूप-कल्ला, चूप्रो, दुल्ल, हेरिवो शब्द प्रमश नम्तृत के शब्दो कल्ग,नूनुक, दुक्ल पोर हेरव से निकटतया सम्बन्धित है। इसके विपरीत शुद्ध पाद जैसे गडीव, गदिशी, प्रादि थोडे अर्थपरिवर्तन के साथ धनु पोर घेनुः पा ही सफेत देते हैं और प्रदसणो, धूलधोगो, धूमद्दारं, मेहच्छीर परिहार, त्यिमा, महरोमराई और इन्ही से मिलते जुलते शब्द संस्कृत के शब्दो से व्युलन पिये जा सकते हैं यद्यपि (सतात फे) ये शब्द इनके पर्यायवाची नही है तव मी ये अमराः चोर, सूकर, गवाक्ष उदफा, ऋतुमती, भू प्रादि का ही सकेत देते हैं । देशीनाममाला के प्रधियामा शब्द इगी प्रकृति के हैं, परन्तु कुछ निश्चित सख्या ऐसे भी शब्दो को है, जो पायेंतर से हैं प्रोर जो इन शब्दो का सस्कृत के अतिरिक्त अन्य मापापों में निश्चित सम्बन्ध प्रदर्शित करते हैं । इनमे से अनेको शब्द द्राविड भाषा से अपना निपट का सम्बन्ध प्रदर्शित करते हैं। कुछ विशेष उल्लेखनीय शब्द यहां उद्धृत किये जा रहे हैं।
करो (द. जर)-कन्या, चिपका (क. चिक्का)-छोटा, छाणी (त. चाणि या द्वाणि)-गोवर, छिन्न (ते. निल्लि) - सूराख, दारो (ते. दारमु) -सूत्र या फटिनूत्र, पसटि (ते पसिण्डि) - स्वर्ण, पडुजुवई (ते पाडुचु) - अधेड स्त्री, पोट्ट (ते पोट्ट)-उदर, पुल्ली (द्र पुलि)-यात्र, मानो (ते. बाव)-बहिन का पति, (त - म)-सोग रहित या गजा (हेमचन्द्र पालसी) मम्मी (त मामी) - मातुलानी, वंग (ते वर ग) एक फल, वडो (ते प्रोड्ड) - बडा, सूला (क सूले) - वेश्या । ये प्रौर इसी तरह के अन्य शब्दो की अोर शब्दकोश मे सकेत कर दिया गया है । श्री के. अमृतराव ने (इण्डियन एटीक्विरी - 33 पर) यह बताया है कि देशीनाममाला मे कई शब्द अरवी और पसियन के हैं। सर जार्ज ग्रियर्सन ने (जर्नल प्राव रायल एशियाटिक सोसायटी- 235 पर) एक अन्य अरवी के शब्द (खिलाल) का मग्रह इस कोश में दिखाया हैं । इस प्रकार हेमचन्द्र का देशी, केवल सस्कृत के ही शब्दो को नहीं अपितु सस्कृतेतर भारतीय एव विदेशी दोनो ही प्रकार की भापायो के शब्दो का समाहार करता है । यहा सस्कृताभ शब्दो से तात्पर्य है जो शब्द संस्कृत से तो व्युत्पन्न किये जा सकते है, पर जो प्राकृत व्याकरण मे बताये गये नियमो के अनुकूल न हो, इनको देशी शब्दो की परिधि से निकाल देने का पर्याप्त करण भी है क्योकि प्राकृत व्याकरणकारो द्वारा बनाये गये नियम स्वय लचर हैं । यदि हेमचन्द्र प्राकृत 'लट्ठी' और हेट्ठ' शब्द को क्रमश· सस्कृत यष्टि और अधः से व्युत्पन्न कर मकते हैं तो हम नहीं समझ पाते कि वे सभी सस्कृताभ देशी शब्दो को जिनका