Book Title: Deshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Author(s): Shivmurti Sharma
Publisher: Devnagar Prakashan

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Page 302
________________ ___290 ] समाहरण-अनुगमन मम-साधन । सगोन्ली - नमूह-सघातः । हुलिय गोत्र लघु । श्री रामानुन स्वामी द्वारा दी गई ये व्युत्पत्तिया पूर्णतया ध्वनिसाम्य पर प्रवान्ति हैं देगी शब्दो में मस्कृत शब्दो को एक-दो ध्वनियो की भी छाया उन्हे मिनी जिवे उन्हें संस्कृत के शब्दो मे व्युत्पन्न कर लेते हैं। व्युत्पत्ति का तात्पर्य वन ध्वनिनाम्य खोजना नहीं होता। शब्द में ध्वनियो का उतना महत्त्व नही होता. निना उसके अर्थ का । इन युत्पत्तियो में शब्दो के अर्थ पर ध्यान दिये बिना ही ध्वन्यात्मक माम्य का निदर्गन कर दिया गया है । देशीनाममाला मे सयामा प्रयोग की दृष्टि मे तत्मम और तद्भव शब्द बहुतायत से सकलित हैं । पन्तु नगरी पनि देते समय उनके अर्यों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक हो जाना है। श्री गमानुज स्वामी इस तथ्य को ध्यान मे नही रख सके हैं । कहीरही तो उनका मान-भाषा-प्रेम प्रतिहाम्याम्पद स्थिति पैदा कर देता है । सम्कृत चीनी तो मग मूल मानकर जब तक शब्दो की गुत्पत्तिया दी जाती रहेंगी, नारी प्रभार की भ्रान्तिरा उठती रहेगी । अच्छा तो यह हो कि अनादिप्रवृत्त प्रापली लोक भापात्रो) की शब्दावली (देशी पदो) को ध्यान मे रख कर, सम्पत माया की च की जाये। इस दृष्टि में किया गया प्रयत्न महत्त्वपूर्ण परिनाम सामने लायेगा । मन्यत मापा ने रितने ही लोकरूढ शब्दो को प्रात्मसात किया है।

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