Book Title: Deshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Author(s): Shivmurti Sharma
Publisher: Devnagar Prakashan

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Page 303
________________ [ 291 जहा तक देशी शब्दो और सस्कृत के शब्दो मे ध्वनिगत समानता का प्रश्न है यह अत्यन्त स्वाभाविक है। दोनो ही प्रकार के शब्दो का सम्बन्ध भारतीय प्रार्य-भाषाम्रो से है। यह पहले ही प्रतिपादित किया जा चुका है कि देशीशब्द युग यगो में सामान्य जनता के बीच व्यवहृत होते अ ये शब्द हैं, इसके वितरीत सकृत नो तत्सम शब्द पाहित्यिक भापा की सम्पत्ति है । साहित्यिक भाषा और जनभाषा मे जहा युद्ध मौलिक भेद होते हैं, वहीं कुछ समानताए भी होती है। दोनो समानान्तर याग करती रहती है, परन्तु दोनो की अभिव्यक्ति प्राय समान नहीं होती। पभी कभी अनजाने ही जन भाषा के शब्द साहित्यिक भाषा मे पा जाते है और माहित्यिक भाषा उन्हे प्रात्मसात कर लेती है। यही प्रक्रिया जन भाषामो मे भी जननी है । भारत विभिन्न जातियो और सस्कृतियो का देश है। प्रायों के यहा पाने के पहने और बाद में नी अनेको जातिया पायी उनकी अपनी भाषा रही होगी । अपने पूर्व प्रायी हुई जातियो से शब्द ग्रहण करना, प्रार्य-जनभापा के लिए स्वाभाविक बात थी । इसी प्रक्रिया से इसमे द्राविउ' और आग्नेय कुल (कोल, सथाल, मुण्डा पादि) की भाषानो के शब्द आये होगे । पार्यों के बाद भारत मे पाकर बसने वाली जानियो से नी जनभापा ने शव्द गहण किया होगा। अरबी-फारसी के शव्द इसी प्रप्रिया से लाये होगे । प्राचार्य हेमचन्द्र ने इस कोश का सकलन 12 वी शताब्दी मे किया था। उस समय तक प्रार्य जनभा पाए विभिन्न आर्येतर एव विदेशी शब्दावली का प्रभाव रहण कर चुकी रही होगी । ये प्रार्येतर भापायो के तथा विदेशी शब्द, दोनो ही, देशी शब्दो की अपनी प्रकृति प्रत्यगत विशेपतानो से सयुक्त होकर व्यवहृत हुए है। 12 वी शदी तक लोक-भापा मे जितने भी शब्द प्रचलित थे, हेमचन्द्र ने सभी (प्राप्य) का सकलन इन कोश मे कर दिया होगा। इसका विस्तृत विवरण आगे दिया जायेगा । उपरोक्त तथ्यो को ध्यान में रखते हुए देशीनाममाला की शब्दावली को निम्नलिखित विभागो मे वर्गीकृत किया जा सकता है (1) अनादिप्रवृत्त प्राकृत भापा (लोकभापा) के वे शब्द जिनकी व्युत्पत्ति नहीं दी जा सकती । देशीनाममाला के अधिकाश शब्द इसी वर्ग के अन्तर्गत पाते हैं । ऐसे शब्दो का स्रोत भारत मे भिन्न-भिन्न समयो मे पाने वाली जातियो की भाषा मानी जा सकती है । 1. (अ) दे ना मा फी ग्लासगे मे द्राविड भापामओ से गृहीत कई शब्दो की ओर सकेत किया गया है। (व) इडियन ए टीक्विरी-जिल्द 46 मे के. अमृतराव के एक लेख 'दि द्रवीडियन एलीमेट इन प्रात' में भी कई शब्दो को और सकेत किया गया है।

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