Book Title: Deshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Author(s): Shivmurti Sharma
Publisher: Devnagar Prakashan

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Page 299
________________ 1287 प्रोलुग्गो = सेवक अवरुग्ण । होता कि 'अवलग्न' शब्द से इसे व्युत्पन्न किया जाता। श्रोसक्की = अपसृत शप-सन्त । पोसण्ण = त्रुटित7वसन्त ।। प्रोसिगे = प्रवल अप-धि-क । प्रोमोस = अपवृत्त (पीछे घूमना) L उत्-शीर्द । फवानको = पीन कर्कश । कडप्पो = निकर ।कलाप या कर्पट । फप्परिन = दारिताखर्पर । फलवू = सुन्वीपामग्रलाबू । फलिग = नीलोत्पल/कली। फलेरो = ककालकराल । फविलो = पूया.कपिल । कविन = पाराव.फपिश । फालट्ठ = धतु काल-वर्त । फालिया - शरीरकाल । किरिइरिया = कर्णोपकरिणका । किरिकिरि । फुड्डगिलोई = छिपकली/कुद-गिल । फुनु भिलो - पिशुन Lकुसुम्भ । फूल = सैन्यस्य पश्चाद्भाग कूल केयालू = नि सह Lखेदालू । गत्ताडी = वेश्यागात्री। गयगरई = मेघ । गगनरति । गहकल्लोलो = राहु ग्रहकल्लोल 1 गुम्मइयो = सचलित गुल्म । घरयदो - दर्पण।गृहचन्द्र । चूयो = स्तनाग्रसचचुक -- यह शब्द प्राकृत से ही संस्कृत मे गया हुया लगता है। छेधो = स्थासक ।छेद। झपरणी = पक्ष्मक्षप् । झाड = लतागहन । माट-यह शब्द भी प्राकृत की सम्पत्ति लगता है। डाली = शाखा/दल ।

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