Book Title: Deshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Author(s): Shivmurti Sharma
Publisher: Devnagar Prakashan

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Page 296
________________ 284 1 प्रतीत होते हैं। वन ध्वनिलाम्य के आधार पर शब्दों की व्युत्पत्ति कभी-कभी वडी भ्रामक हो गती है । दे. ना मा की ग्लासरी (शब्दकोश) मे श्री रामानुजन् ने ध्वनिमान्य के प्राचार पर कुछ ऐनी व्युत्पत्तिया दी हैं जो अत्यन्त श्रामक होने के साथ ही हान्गम्पद भी हो गयी हैं। वे उजडं शब्द को संस्कृत उज्ज्वल शब्द से व्युत्पन्न करते हैं। हिन्दी का 'उजडा' पद 'उजड' का ही विकसित रूप है। इसका स. उज्ज्वल शब्द में कोई नबन्न नहीं दिखायी पड़ता । इमी प्रकार 'अगों' शब्द को, जिसका अर्थ दानव है, वे स, प्रमुर शन्द मे व्युत्पन्न करते हैं, अच्छा था वे इसे 'अकाय.' शब्द में पान करते हैं, दानव भी कभी-कभी अशरीरी होते है। इमी तरह अगहणोसागतिर को वे स 'अगवन' शब्द से व्युत्पन्न करते हैं। कापालिक को कौन ग्रहण जग्ना चाहगा। इसी प्रकार अनेकों काल्पनिक एवं ध्वनिसाम्य पर आधारित व्युवतियों को नामरी में भरमार है । इस तरह की व्युत्पत्तिया निरुक्तकार यास्क के समय में ठीक लगती , उनका एक मिद्धान्त भी था, वे सभी शब्दो को प्राख्यानड मानगर वो थे । परन्तु ग्राज, जब कि भापा-शास्त्र बहुत आगे बढ चुका है, पता नही गिननी प्राचीन मान्यताएं भ्रामक सिद्ध हो चुकी है, इस प्रकार की व्युत्पत्ति मुगाना कहा तक उपयुक्त होगा । इस म्पल पर दे. ना. मा की ग्लामरी में दी गयी दुरबत्तियों का उल्लेव कर देना अनुपयुक्त न होगा प्रसन - प्रवद ग्रानान्त । मन्ठिान्लो = द्वेप्य. (ण) अक्षिहर । प्रजुमनवाया = अम्लियावृक्षाअयुगलपणं । प्रट्ट = पृग प्रिट्ट । प्रगनिमोक्षगरहित ।न-रिक्त । अवधि = हियका अनुबंध । प्रमय - पुनन्ताप्रन्य मय । मायुद्ध - साप्रम्यत । प्रदगि = मनोग्याधियफलप्राप्तिः प्रबुदधी प्यारी = वानर प्रयक्ष ।

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