Book Title: Deshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Author(s): Shivmurti Sharma
Publisher: Devnagar Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 284
________________ 272 ] रो कच्छी-वात्र, कट्टारी-झुन्किा, करमरी-बलात् लायी गयी स्त्री, गड्डरीछागी, बिल्लिगे-माफ प्रादि । द - यह भी 'देमी प्रत्यय है । भोट्टी-प्रघमहिपी, तरवडो-क वृक्ष, धट्टी-पशु , दुग्धुट्टो-हस्ती, परिहट्टीप्राय पंग, पोट्ट उदरम, गेट्ट-पाटा । गाउटो-मभाव , यउट-भेलावा का वृक्ष, वेड्डा-मू छ-दाढी, मड्डा बलात्कार , दड्डो-महान् हुड्डा-जुग्रा, हिड्डो-वामन अल्ल-इल्ल-टल्ल-उल्ली इनकी तुलना प्रा. मा पा के उल (चटुल-मृदुल) से की जा सकती है । पर प्रा ना आ मे भी यह देश-भापायो मे ही लिया गया होगा। पाणिनि के उणादि प्रत्ययो में अनेक देग्य प्रकृति के है । ग्रन यह विगुद्व 'दमी' प्रत्यय है । रामतकंवागीश ने वैदी मे न प्रत्यय का प्रयोग वाहुल्य बताया है 'वेदमकामन्नघना वन' 31318 मारंप्टेब गिल वाते है । दे ना मा की शब्दरचना मे इन प्रत्ययो का वाहुल्य उम्मन्न तृप्या, उम्मल तोन्नृप , प्रोल्ली-दीर्घमधुरध्वनि., कल्ला-मद्यम् निन्दा-गनिपती, दरवत्लो गाम स्वामी, मूप्रत्लो मूक , लइग्रल्लीबृपभ गिल-बमातम्,प्राकिलो नवीन, एककनाहिल्लो एकस्थानवाची, एक्क पछिल्लो देवर, पोरिलो-प्रल्पमम्य ,, कइलबरलोम्वच्छदचारी वृपभ , गन्दा लो मयूर । लन्टिलो -प्य , रन्दुल्लो अनुवाद , उमपुर ना-पुरा, काउन्ल बोनस पाउनोस अम्मा-पुनी-गिला, पन्निन गपितम् परियो सादिमनन, प्रथरिकको भणरहितः, उबुक्क रदन, बट्टिक्कोगोनिन, मटरको उद्धार प्रादि ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323