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कच्छी-वात्र, कट्टारी-झुन्किा, करमरी-बलात् लायी गयी स्त्री, गड्डरीछागी, बिल्लिगे-माफ प्रादि । द - यह भी 'देमी प्रत्यय है ।
भोट्टी-प्रघमहिपी, तरवडो-क वृक्ष, धट्टी-पशु , दुग्धुट्टो-हस्ती, परिहट्टीप्राय पंग, पोट्ट उदरम, गेट्ट-पाटा ।
गाउटो-मभाव , यउट-भेलावा का वृक्ष, वेड्डा-मू छ-दाढी, मड्डा
बलात्कार , दड्डो-महान् हुड्डा-जुग्रा, हिड्डो-वामन अल्ल-इल्ल-टल्ल-उल्ली
इनकी तुलना प्रा. मा पा के उल (चटुल-मृदुल) से की जा सकती है । पर प्रा ना आ मे भी यह देश-भापायो मे ही लिया गया होगा। पाणिनि के उणादि प्रत्ययो में अनेक देग्य प्रकृति के है । ग्रन यह विगुद्व 'दमी' प्रत्यय है । रामतकंवागीश ने वैदी मे न प्रत्यय का प्रयोग वाहुल्य बताया है
'वेदमकामन्नघना वन' 31318 मारंप्टेब गिल वाते है । दे ना मा की शब्दरचना मे इन प्रत्ययो का वाहुल्य
उम्मन्न तृप्या, उम्मल तोन्नृप , प्रोल्ली-दीर्घमधुरध्वनि., कल्ला-मद्यम् निन्दा-गनिपती, दरवत्लो गाम स्वामी, मूप्रत्लो मूक , लइग्रल्लीबृपभ गिल-बमातम्,प्राकिलो नवीन, एककनाहिल्लो एकस्थानवाची, एक्क पछिल्लो देवर, पोरिलो-प्रल्पमम्य ,, कइलबरलोम्वच्छदचारी वृपभ , गन्दा लो मयूर । लन्टिलो -प्य , रन्दुल्लो अनुवाद , उमपुर ना-पुरा, काउन्ल
बोनस पाउनोस अम्मा-पुनी-गिला, पन्निन गपितम्
परियो सादिमनन, प्रथरिकको भणरहितः, उबुक्क रदन, बट्टिक्कोगोनिन, मटरको उद्धार प्रादि ।