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[ 47 हेमचन्द्र जैसा प्रकाण्ड भाषाविद् जिस बात की प्रतिज्ञा करता है उसका निर्वाह भी करता है । पिगेल प्रगति विद्वानो ने प्राचार्य पर यह प्राक्षेप किया है कि उन्होने अनेको देशी प्रात्यात पदो का आल्यान करते हुए भी स्वीकार नही किया । इस विवाद को दूर करने के लिए मेरी विनम्र सहमति हे कि प्राचार्य ने यदि कही 'प्रान्यात पदो' का प्रयोग किया भी है तो वे मल प्रारयात पद न होकर 'कृदन्ती' पद है । उनका प्रात्यान सना या विशेषण पद के रूप मे है न कि 'याख्यात पद' के रूप मे, एक उदाहरण द्रष्टव्य है
मोरे प्रल्लरलो कुक्कुडे अलपो प्रयालि दुद्दिणये
विण्णहम्मि अअसो अज्झस्म सविनमारलए अणह ।। 1 13 इस कारिका मे 'अज्झम्स' पद यद्यपि धात्वादेश है-श्राचार्य इसे स्वीकार भी करते हैं- ... अज्झन्स प्राकृस्टम् । अय धात्वादेश । अझसइ । अज्झस्सिन । इत्यादि प्रयोगादर्शनात् । पूर्वाचार्यानुरोधात्त्विह निबद्ध ... . . 1 13 व्याख्या । परन्तु प्रस्तुत कारिका मे इसका प्रयोग एक विशेपण पद के रूप मे हुआ है। इसी प्रकार अन्य 'पाल्यात पदो' की भी स्थिति है यदि इस दृष्टि से देखा जाये तो प्रतिलिपिकारो द्वारा लिखा गया (सम्भावित) तथा डा० पिशेल और मुरलीधर बनर्जी द्वारा स्वीकार किया गया 'देशीनाममाला' नाम सर्वथा सार्थक और विस्तृत अर्थ देने वाला है।' देशीनाममाला का रचनाकाल
अन्त साक्ष्य --'देशीनाममाला' की रचना प्राचार्य हेमचन्द्र ने अपने प्राकृत शब्दानुशासन (हेमशब्दानुशासन का 8वा अध्याय) के पूरक ग्रन्थ के रूप में किया है । इमे वे 'देशीनाममाला' के अष्टम सर्ग की अन्तिम कारिका की व्याख्या मे स्पष्ट कर देते है
"इत्येप देशीशब्द सग्रह स्वोपज्ञशब्दानुशासनाष्टमाध्यायशेषलेशो रत्नावली नामाचार्य श्री हेमचन्द्र विरचित इति भद्रम् ।"
इसी प्राशय की वात वे ग्रन्थ के प्रारम्भ मे प्रथम वर्ग की प्रारम्भिक आर्या की व्याख्या में करते हैं---
In I-2 and VIII-77 It is stvled देणीशब्दस ग्रह a name which Is also intimated by the MSS BDCFGI as they call the Vritti देशीशब्दसग्रहवृत्ति, रत्नावली being too unexpressive a name and देशीनामFIT the usual appelation of works of the kind. I have followed the best Mss
-R Pishel Deshinammala Introduction P 9.