Book Title: Deshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Author(s): Shivmurti Sharma
Publisher: Devnagar Prakashan

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Page 273
________________ [ 261 अध्ययन 1. पगाम-मापा जी लघुतम अर्थवान् इकाई को पदयाम कहते है। एक पावागाया अनेक राहादगाम होते हैं । ये सहपदनाम परिपूरक वितरण पामिक अध्ययन पी हष्टि में देतीनाममाला की शब्दावली अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस प्रकार के अध्ययन में ही इस कोश के शब्दो का सबध किसी युग विरामी भाषा से जोड़ा जा सकता है । "देशीनाममाला' केवल नामपदो का सग्रह गन्चो नामपदी का भारतीय विचन ही यहा अभीष्ट है। निरुक्तकार गार ने पद गमा, के चार विभाग निये 2-1 नाम, 2 पाख्यात, 3. उपसर्ग, 4. निधप्रधान प्रर्यात द्रव्यप्रधान पद नाम हैं। भावप्रधान अर्थात् क्रिया माग पर प्रगान गाहनाने हैं। अगंद्योतक पद उपसर्ग हैं तथा सपाती और पदपूरक पद निरात पहलाते हैं। देशोनाममाला की शब्दावन्नी का सम्बन्ध प्रथम वर्ग की शब्दावली से है। जमो अन्तर्गत, सजा, विशेपण पीर प्रियानिशेपण पदो का समाहार किया जाता है। पारवान प्रर्धात क्रियापदो का प्रयोग देशीनाममाला की शब्दावली मे नही के बगबर है जो है भी, कृदन्ती प्रयोगो के प्राधार पर विशेपण या मिया विशेषण स्प मे है । उपमर्ग सज्ञापो के व्युत्पादक अभिन्न अ ग वनकर आये हैं । मुक्त रूप में प्रर्यवान् न होते हुए भी ये पद-बद्ध होकर अर्यवान हो जाते हैं । प्रत इनका विवेचन धुवादक प्रत्ययो के रूप में किया जाना चाहिए। निपातो की स्थिति देशीनाममाला की शब्दावली में नहीं है प्रत. इनका विवेचन यहा किये जाने वाले अध्ययन फा विपय नहीं होगा। शब्दो का स्वरूप __ भाषा मे किसी भी प्रातिपदिक या धातु का स्वतत्र प्रयोग सभव नही होता । सस्कृत में तो यह नियम ही था-"नापदशस्र प्रयुञ्जीत" | निविभक्तिकपद भाषा का प्रग ही नहीं बन सकता । पाणिनि ने तो सुवन्त या तिडन्त होना, पद का लक्षण ही बताया है । जहा विभक्तियो का कोई लक्षण उपस्थित नही होता वहा भी विभक्तियो का लोपप्रदर्शित कर, पद को विभक्त्यन्त बनाकर प्रयोग करने की प्रवृत्ति है। 1 2. 3. फवीर की मापा-डा मातावदल जायमवाल, पृ.51 पर दी गयी पाद टिप्पणी। सुप्तिहन्त पदम् । पाणिनि 114114 सध्यपादपिसुप । पाणिनि 214182

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